गरीब मजदूर
Garib Majdoor
भारतीय मज़दूर का जीवन घोर परिश्रम की कहानी है। वह मुंह-अँधेरे जागता है तथा दिन-भर हाड़-तोड़ परिश्रम करता है। प्रात: 8 से सायं 5 बजे तक अथक शारीरिक परिश्रम करने से उसका तन चूर-चूर हो जाता है। अधिकतर मजदूरों के बच्चे अज्ञान और अशिक्षा में पलते हैं। इस कारण वे अज्ञान, अशिक्षा और अंधविश्वास में जीते हैं। अज्ञान के ही कारण वे पढ़े-लिखों की दुनिया में ठगे जाते हैं। डॉक्टर उन्हें अधिक मूर्ख बनाते हैं। दुकानदार भी उनसे अधिक पैसे वसूलते हैं। बस या गाड़ी कहाँ भी चले जाएँ, उन्हें सम्मानपूर्वक बैठने भी नहीं दिया जाता। मजदूरों की सूखी जिंदगी में सुख के हरे-भरे क्षण तब दिखाई पड़ते हैं, जब वे रात्रि में ढोलक की ताल पर कहीं नाचते-झूमते नजर आते हैं या अपने देवता के चरणों में गान करते दिखाई देते हैं। परिश्रमी होने के कारण मजदूर मन से बहुत भोले, सरल और निश्छल होते हैं। उनका उत्थान तभी हो सकता है जबकि उनके संगठन बनें और वे शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाएँ।