गाँव में फैशन की दस्तक
Ganvo me Fashion ki Dastak
फैशन शहरों का ही नहीं गाँव का विषय भी रहा है। जैसे शहर में युवतियाँ आधुनिक फैशन उपकरणों से सजती-संवरती रही हैं उसी तरह ग्रामीण युवतियाँ भी अपने आपको सुन्दर दिखाने का प्रयास करती रही हैं। यह बात अलग है कि साधनों का अन्तर है। ग्रामीण बालाएँ अपने शरीर को फूलों से सजाती हैं. अपने शरीर में अनेक प्रकार के गूथने गुथवाती हैं। धार्मिक प्रकृति की स्त्रियाँ-युवतियाँ अपने हाथों व विभिन्न अंगों पर अपने इष्टदेव का चित्र गुंथवाती हैं और अन्य भी अपनी रुचि के अनुसार सिंगार करती हैं। लेकिन यह अवश्य कहा जा सकता है कि जो फैशन शहरों में आजकल चल रहा है उससे ग्रामीण स्त्रियाँ और युवतियाँ भी नहीं बची हैं। जिस तरह जीन्स और टॉप पहनकर शहरी युवतियाँ आती-जाती हैं, उस तरह ग्रामीण युवतियाँ भी आने-जाने लगी हैं। जिस तरह स्कर्ट-टॉप शहर की लड़कियाँ पहनती हैं उसी तरह ग्रामीण भी पहनने लगी हैं। इसी तरह विभिन्न अभिनेत्रियों की तरह का केश विन्यास जिस तरह शहरी युवतियाँ करती रही हैं, उसी तरह ग्रामीण भी करती रही हैं। पहले बजुर्गों की गाँव में शरम होती थी। सर से चुनी नहीं उतरती थी। अब इनकी परवाह गाँव की युवतियाँ भी नहीं करती हैं। सर पर तो छोड़ो चुन्नी लेना ही बंद कर दिया है। सच तो यह है कि ग्रामीण स्त्रियों और शहरी स्त्रियों के फैशन में अन्तर नहीं रहा है। अन्तर धन व्यय करने में है। शहर की स्त्रियाँ अपने फैशन पर एक दिन में हजारों रुपए खर्च कर देती है, पर ग्रामीण स्त्रियों के पास आधुनिक फैशन करने के पर्याप्त साधन नहीं है। आखिर जब शहर में आधुनिक जीवन शैली का प्रभाव पड़ रहा है तो इससे गाँव भला कैसे बचे रह सकते हैं।