हिंदी भाषा का भविष्य
Future of Hindi Language
किसी भी राष्ट्र की स्वतंत्रता स्थिर तभी रह सकती है जब उसके निवासियों में राष्ट्रीय चेतना हो। हमारे भारत में राष्ट्र ध्वज, राष्ट्रगान, राष्ट्र चिह्न और राष्ट्रभाषा का समान महत्त्व है। अगर हमारे मन में अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति सम्मान नहीं है तो इससे यह प्रमाणित हो जाता है कि हम अपने राष्ट्र के प्रति जरा भी आस्था नहीं रखते। राष्ट्र भाषा स्वतंत्र देश की संपत्ति है। हमारे देश की राष्ट्र भाषा हिंदी है। लेकिन बहुत-से देशवासी हिंदी को महत्त्व न देकर अंग्रेजी को देते हैं। राष्ट्रभाषा दो शब्दों से मिलकर बनी है राष्ट्र और भाषा। इसका अर्थ है राष्ट्र की भाषा। राष्ट्रभाषा का महत्त्व राष्ट्रीय सम्मान की दृष्टि से है। एक ही राष्ट्र के निवासी जब अपनी राष्ट्रभाषा में बात न कर अंग्रेजी या अन्य विदेशी भाषा में करते हैं तब शर्म से सर झुक जाता है। हिंदी देश के एक बड़े-भू भाग में बोली जाती है। हिमगिरि से कन्याकुमारी तक हिंदी की पहचान है और पहुँच है। सांस्कृतिक दृष्टि से इसकी परंपरा संपन्न है। गाँधी जी ने समस्त भारतीय भाषाओं में केवल हिंदी को ही समस्त विशेषताओं से युक्त समझा। स्वतंत्र देश के समस्त नेताओं ने हिंदी को महत्त्व दिया। हिंदी के पूर्ण महत्त्व को स्वीकार करते हुए 14 सितंबर 1949 को हिंदी राष्ट्रभाषा घोषित हो गई। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू करते समय देवनागरी लिपि में लिखित हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाया गया। लेकिन दुर्भाग्य रहा कि इतने वर्षों के बाद भी हिंदी को राष्ट्रभाषा का सम्मान नहीं मिल पाया। देश में हिंदी पढ़ने-लिखने
और बोलने वालों की संख्या 75 प्रतिशत होगी और अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या दो-तीन प्रतिशत। फिर हिंदी के साथ विडंबना यह है कि लोग डरे हुए हैं। उन्हें लगता है कि हिंदी पढ़कर उनके बच्चों को अच्छी नौकरी नहीं मिलेगी। उन्हें पढ़ा-लिखा नहीं समझा जाएगा। यह भाषा वैज्ञानिक व वाणिज्य संकाय के उपयुक्त नहीं है आदि। आज राष्ट्रभाषा का अखिल भारतीय स्वरूप उभरा हुआ है, यह जनमानस की भाषा है। अंग्रेजीदां लोगों को जब चुनाव लड़ना होता है और वे आम जनता के बीच आते हैं तब हिंदी बोलते हैं। जब व्यापारियों को अपने उत्पाद बेचने होते हैं तो हिंदी में विज्ञापन देते हैं। पूरे देश में फ़िल्मी गीत हिंदी में बोले, सुने-गाए और लिखे जाते हैं। पूरे देश में हिंदी फिल्में सबसे ज़्यादा चलती हैं। आज हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है। हिंदी पढ़ा-लिखा भूखा नहीं मर रहा है अपितु हिंदी लाखों परिवार को पाल रही है। देश में ही नहीं, विदेशों में भी हिंदी भाषा के साहित्य को पढा और समझा जाता है। अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी हिंदी विषय पढ़ाया जाता है। केवल इतना ही नहीं, छात्र भी इसे रुचि से पढ़ते हैं। हिन्दी अध्यापकों को भी विदेशों में सम्मान दिया जाता है।
वर्तमान समय में भारत में भा.ज.पा. की सरकार ने हिन्दी को सरकारी कामकाज में बहुत महत्त्व दिया है। हिन्दी में अनेक पदों पर नियुक्तियाँ की जा रही हैं। हिन्दी में अभियन्ता के विषय भी (पिलानी) में पढ़ाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त दसवीं कक्षा तक हिन्दी पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया है। दक्षिण भारत की जनता भी प्रसन्नता से हिन्दी विषय पढ़ रही है। निःसन्देह हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल है।