इरापल्ली प्रसन्ना
Erapalli Prasanna
जन्म : 22 मई, 1940 जन्मस्थान : बंगलौर (कर्नाटक)
1970 के दशक में प्रसन्ना भारतीय क्रिकेट टीम के महत्त्वपूर्ण खिलाड़ी रहे। उनका पूरा नाम इरापल्ली अनाथाराव श्रीनिवास प्रसन्ना है। वह दाहिने हाथ के बल्लेबाज़ रहे। वह भारत की ‘स्पिन चौकड़ी’ के एक प्रसिद्ध सदस्य रहे। उनकी ऊंचाई कम होते हुए भी वह गेंदबाज़ी में अत्यन्त माहिर थे और बल्लेबाज़ को आसानी से आउट कर देते थे।
प्रसिद्ध भारतीय स्पिन की धमाकेदार चौकड़ी का हिस्सा इरापल्ली प्रसन्ना ने चार टैस्ट में 25 विकेट लिए तथा भारत को प्रथम ओवरसीज़ जीत हासिल कराने में सफलता दिलाई। भारत ने 1967-68 में यह सीरीज़ न्यूजीलैंड के विरुद्ध जीती थी।
प्रसन्ना भारतीय टीम के अलावा कर्नाटक व मैसूर की टीमों के भी सदस्य रहे। प्रसन्ना ने खेल की शुरुआत 1960-61 में वेस्टइंडीज़ के विरुद्ध की। इसके बाद कुछ टेस्ट मैच खेलने के पश्चात् प्रसन्ना ने 4 वर्ष का ब्रेक ले लिया ताकि वह अपनी पढ़ाई पूरी कर इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर सकें।
1966 में प्रसन्ना पुनः भारतीय टीम में शामिल हुए और भारत में वेस्टइंडीज़ के विरुद्ध खेले। इस सीरीज़ में उन्होंने चन्द्रशेखर तथा नए खिलाड़ी बिशनसिंह बेदी के साथ वेस्टइंडीज़ की शक्तिशाली टीम के विरुद्ध खेला। प्रसन्ना ने टाइगर पटौदी के नेतृत्व में क्रिकेट खेली और उनका सर्वश्रेष्ठ आक्रामक प्रदर्शन भारत के 8 टैस्ट मैच के विदेशी दौरे के दौरान था जो आस्ट्रेलिया व न्यूज़ीलैण्ड में था। न्यूज़ीलैण्ड के विरुद्ध मैच में प्रसन्ना का उत्तम योगदान रहा जिससे भारत को प्रथम ओवरसीज़ जीत हासिल हुई।
1970-71 में वेस्टइंडीज़ टूर के दौरान प्रसन्ना ने अजित वाडेकर की कप्तानी में खेला। तभी दुर्भाग्यवश प्रसन्ना को चोट लग गई और उनके स्थान पर राघवन को भारतीय टीम में शामिल कर लिया गया। बाद में प्रसन्ना टीम होते चले गए और वेंकटराघवन ने उनका स्थान ले लिया। यद्यपि प्रसन्ना
वेंकटराघवन का खेलने का स्टाइल एक-दूसरे से विपरीत था लेकिन टीम में 4 स्पिनर नहीं रखे जा सकते थे। अतः वेंकटराघवन की फील्डिंग क्षमता तथा गि बेहतर होने के कारण उन्हें टीम में स्थान दे दिया गया।
उपलब्धियां :
- प्रसन्ना प्रसिद्ध भारतीय स्पिन चौकड़ी में से एक थे।
- चार टेस्ट मैच में 25 विकेट लेकर भारत को पहली बार ओवरसीज विजय दिलाने में मदद की जो मैच न्यूज़ीलैंड (1967-68) के विरुद्ध था।
- टेस्ट मैचों के टूर पर उन्होंने आस्ट्रेलिया व न्यूज़ीलैंड में (1967) बेहतरीन प्रदर्शन किया। उनकी अपनी गेंदबाजी की कला से खिलाड़ी आसानी से आउट होते थे।