एकल परिवारों में बुजुर्गों की स्थिति
Ekal Parivaro me Bujurgo ki Sthiti
आज का दौर संयुक्त परिवारों का न होकर एकल परिवारों का है। शादी होते ही लड़के किसी भी कारण से माता-पिता से अलग जाकर रहने लगते हैं। जब तक परिवार में कई प्राणी होते हैं तब तक तो दिक्कत नहीं आती। पर कुछ साल बाद होता यह है कि वृद्ध माता-पिता एकाकी रह जाते हैं। उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता। लड़के या तो अपना भविष्य बनाने के लिए विदेश या अपने राज्य से हजारों किलो मीटर दूर रहना शुरू कर देते हैं अथवा सास बह की अनबन के कारण उन्हें विवशतावश दूर रहना पड़ता है। पहले तो बुजुर्ग किसी तरह अपना समय काट लिया करते थे पर आजकल इतना भौतिक और स्वार्थी जमाना है कि जब तक माता-पिता के पास धन है तब तक उसका खयाल रखते हैं जब सेवानिवत्त हो जाते हैं तब उन्हें उनके रहमोकरम पर छोड़ दिया जाता है। अकेले बुजुर्गों के बीमार होने पर उनकी कोई देखभाल करने वाला नहीं होता, और अगर पेंशनकर्मी न हो तो भूखों मरने तक की नौबत आ जाती है। यही नहीं, समाज में बढ़ते अपराधों का उन्हें भी शिकार होना पड़ जाता है। आजकल ऐसी घटनाएँ लगातार घट रही हैं। कैसा जमाना आ गया है, माता-पिता एक साथ पूरे परिवार को पाल देते हैं और लड़का अपने माता-पिता को अक्षम होने पर नहीं पाल पाता। कुछ भावुक बुजुर्ग तो माता-पिता तो अपने बेटों व बेटियों के फोन तक की प्रतीक्षा करते रहते हैं। एक बार एक दुकान पर एक बुजुर्ग ने जाकर अपना मोबाइल दिखाया। कहा, यह ठीक नहीं है, ठीक कर दो। दुकानदार ने देख-भाल कर कहा कि यह ठीक है। इसमें कोई दिक्कत नहीं है। उस बजर्ग का कहना था कि तब इसमें मेरे बेटे का फोन क्यों नहीं आता? यह सुनकर दुकानदार भावुक हो गया। बुजुर्ग प्यार के भूखे हैं। मत रहो उनके साथ, पर उनका खयाल तो रखो।