एक सैनिक की आत्मकथा
Ek Sainik Ki Atmakatha
मैं भारतीय सेना का एक सैनिक हूँ। मेरा नाम करतार सिंह है। मैं मथुरा जनपद के बलदेव कस्बे का रहने वाला हूँ तथा मधुबन (करनाल) के सैनिक स्कूल में पढ़ा हूँ स्कूल के समय से ही मैंने सैनिक अनुशासन व कठोर दिनचर्या का पालन किया है। सुबह चार बजे जागकर परेड करना मेरे जीवन का अंग बन चुका है। देश की पर्वतीय सीमा पर हमें बड़ी विषम परिस्थितियों में जीवन बिताना पड़ता है। सर्दी में जब तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है तब भी हाड़ कैंपा देने वाली ठण्ड में हम पूरी सजगता और निष्ठा से देश की सीमा की सुरक्षा में लगे रहते हैं। देश की अन्य सीमाओं पर भी हम अनेक असुविधाओं और कठिनाइयों को भोगते हुए अपने कर्त्तव्य का पालन करते हैं। देशवासी चैन की नींद सो सकें इसके लिए हम रातों में जागकर पहरा देते हैं। घुसपैठियों व आतंकवादियों से जूझते हुए हम हमेशा अपने प्राण न्यौछावर करने को तैयार रहते हैं। इस प्रकार से ड्यूटी के दौरान मैंने लेह के बर्फीले इलाकों का भी आनन्द लिया और जैसलमेर की तपती बालू का भी। हम सैनिकों की जिन्दगी में एक अजब दीवानापन होता है। प्रतिदिन कोई न कोई नई चुनौतियाँ हमारे सामने होती हैं। हमारी किसी साँस का कोई भरोसा नहीं होता। मौत हर दम हमारे सामने नाचती रहती है किन्तु हम दीवाने उससे खेलते रहते हैं। हम कहीं भी हों, मस्ती हमारा साथ नहीं छोड़ती।