दीवाली में फ़िज़ूल खर्चा
Diwali mein Fizul Kharcha
आपने लोगों को कहते सुना होगा कि अबकि बार तो ऐसी दीवाली आई कि घर का दीवाला निकाल कर चली गई। जब आप किसी से ऐसी बात सुनते हैं तो समझो कि इस परिवार अथवा व्यापारी ने दीवाली पर अनाप-शनाप खर्च किया है और अब पछता रहा है। दरअसल दीवाली का सीधा-सा अर्थ है दीवा वाली दीवाली। अर्थात् जिस त्योहार में खुशी में दीए जलाए जाते हैं, उसे कहते हैं दीवाली। दीवाली.खुशियों का त्योहार है। लक्ष्मी की पूजा का पर्व है। लेकिन जिन लोगों को बाजार में खरीदारी करनी नहीं आती, वे इस त्योहार पर गैरजरूरी चीजें खरीद कर परे महीने का बजट बिगाड देते है। कुछ लोग दीवाली पर जुआ खेलना शुभ मानते हैं। यह परंपरा कब से चली आ रही है इसके बारे में किसी को पता नहीं, बस सगन मानते हैं। यह लोगों का गलत विश्वास है। इस खेल में करोड़पति खाकपति हो जाता है। कुछ दिखावे के लिए दीवाली पर हजारों रुपए की आतिशबाजी करते हैं। वह बहुत महँगी होती है। इस दिन आसमान पर आधी | रात के बाद तक बम फटते सने जा सकते हैं। इस कारण टीबी के मरीज परेशान होते हैं, पर्यावरण दूषित होता हा दखावा । तो इतना है कि जिस क्लर्क की सात हजार तनख्वाह है वह भी डाई फ्रट का गिफ्ट अपने मित्रों को देने के लिए जाता है। दीवाली धार्मिक पर्व है। यह राम जी के अयोध्या लौटने की खशी में मनाया जाता है। पर कुछ दिखावेबाज़ और जुएबाजा न इसे अपव्यय का त्योहार बनाकर रख दिया है। इसलिए कहना उपयुक्त है कि दीवाली की रात अपव्यय की मिसाल।