दैव-दैव आलसी पुकारा
Dev-Dev Alsi Pukara
आलसी व्यक्ति ही हे देव! हे देव! की पुकार लगाते हैं। परिश्रमी व्यक्ति अपने भरोसे जीते हैं। वे परिश्रम करके सुखी रहते हैं। परिश्रम करने से उन्हें आनंद और संतोष मिलता है। इसलिए उन्हें विपत्ति में भी धैर्य रहता है। वे अपनी कर्म-शक्ति के बल पर बड़ी-बड़ी कठिनाइयाँ सहर्ष झेल लेते हैं। इसके विपरीत आलसी लोग निकम्मे होते हैं। इसलिए मुसीबत पड़ते ही वे हाय-हाय करने लगते हैं। हाय मर गया ! मुझे बचाओ! हे भगवान! आदि कायरों जैसे शब्द वे ही बोलते हैं। उनकी दया की पकार ही उनका सहारा होती है। इसलिए वे मुसीबत में जोर-जोर से रोने-चिल्लाने के सिवा कुछ नहीं कर सकते। इसलिए यदि दुनिया में रहकर इस हाय-हाय से बचना है तो मेहनत करो। आलस्य छोड़ो। आवश्यकता है अपने आलस्य को कर्म में बदलने की। निष्क्रियता को सक्रियता में बदलने की, नकारात्मक सोच को सही दिशा में लगाने की।