Cinema or Movie “सिनेमा या चलचित्र” Essay in Hindi, Best Essay, Paragraph for Class 8, 9, 10, 12 Students.

सिनेमा या चलचित्र

Cinema or Movie

 

सिनेमा आधुनिक युग में मनोरंजन का एक प्रमुख साधन बन गया है । सिनेमा को चलचित्र भी कहा जाता है। इसमें पर्दे पर चलते-फिरते चित्र दिखाई देते हैं । इसीलिए इसे चलचित्र कहा गया । चलते-फिरते चित्र जब आवाज और संगीत के साथ दिखाई देते हैं तो दर्शकों का भरपूर मनोरंजन होता है।

सिनेमा की शुरूआत उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में हुई थी । भारत में यह बीसवीं शताब्दी में आया । उस समय भारत में अँगरेजों का शासन था । मशीनों का बहुत कम प्रयोग होता था । परन्तु दादा साहब फाल्के जैसे कुछ साहसी लोगों ने भारत में सिनेमा का प्रचार किया । शुरू-शुरू में केवल चित्रों वाली फिल्में बनती थीं। इसमें आवाज़ नहीं होती थी । इसे अवाक् फिल्म का जाता था। पहली अवाक् फिल्म सत्य हरिश्चन्र के नाम से बनी थी। जल्दी ही आवाज वाली फिल्में बनने लगीं। इस तरह की फिल्मों को सवाक् फिल्मों का नाम दिया गया। पहली सवाक् फिल्म ‘आलम आरा’ थी।

अच्छी फिल्में बनने लगी तो लोग सिनेमा की तरफ आकर्षित होने लगे । फिल्में दिखाने के लिए देश के सभी प्रमुख शहरों में सिनेमाघर या टॉकीज बनाए गए । सिनेमा का खूब प्रचार हुआ । नौटंकी, नाटक आदि मनोरंजन के पुराने साधनों का महत्त्व कम होता गया । सिनेमा से न केवल मनोरंजन होता है बल्कि इससे शिक्षा भी मिलती है । सिनेमा के माध्यम से लागों तक संदेश पहँचाने का काम शुरू हुआ । उस समय टेलीविजन का प्रचार-प्रसार नहीं हुआ था । अत: आम लोगों तक चित्रों के माध्यम से संदेश दन का काम सिनेमा ही करता था।

सफेद-काले चित्रों वाली फिल्मों के स्थान पर रंगीन फिल्में बनने लगी । रंगीन फिल्मों में चित्र और भी साफ और स्पष्ट आने लगे । सिनेमा फैलता ही चला गया । सिनेमा के गीत-संगीत लोकप्रिय होते चले गए । सिनेमा के कलाकारों को अधिक धन और सम्मान मिलने लगा । देवानन्द, दिलीप कुमार, सुनील दत्त, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन जैसे लोग फिल्मों के नायक न होकर जनता के भी नायक बन गए । लता मंगेशकर, मुकेश, किशोर कुमार, मुहम्मद रफी, आशा भोंसले जैसे गायक-गायिकाओं को जनता ने सिर-आँखों पर बिठा लिया।

सिनेमा आज भी आम लोगों में काफी प्रसिद्ध है । टेलीविजन और रेडियो पर सिनेमा के कार्यक्रमों की भरमार हो गई है। अब लोग घर बैठे ही अपनी मनपसंद फिल्में देख सकते हैं । लोग न केवल देशी मगर विदेशी फिल्में भी देख सकते हैं। भारत में हिन्दी, तमिल, बंगला, कन्नड़, पंजाबी, भोजपुरी आदि अलग-अलग भाषा में हर वर्ष हजारों फिल्में बनती हैं । इन फिल्मों से व्यापार को काफी बढ़ावा मिलता है । मनोरंजन का यह कारोबार पूरी दुनिया में फैल चुका है।

सिनेमा का समाज पर बहुत असर पड़ता है । अच्छी फिल्मों से हमारा मनोरंजन होता है तथा शिक्षा मिलती है । बुरी फिल्मों से समाज पर बुरा असर पड़ता है । हिंसा और अश्लीलता से भरी फिल्मों को देखकर युवावर्ग के लोग भटक जाते हैं । अत: अच्छी फिल्में अधिक से अधिक संख्या में बननी चाहिए । फिल्में बनाने वालों को अपनी जिम्मेदारी का पूरा-पूरा ध्यान होना चाहिए । उन्हें यह समझना चाहिए कि फिल्मों का समाज पर अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

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