चुनावी वादे
Chunavi Vade
भारतीय राजनीति का कटु सत्य है कि जब राजनेता चुनाव लड़ने के लिए जनता के बीच आते हैं तब उनसे बड़े-बड़े वादे करते हैं। पर जब चुनाव जीत जाते हैं तो वादा पूरा करना तो दूर अपने निर्वाचन क्षेत्र तक में नहीं आते। कई नेता तो ऐसे हैं जो जीतने के बाद अपने निर्वाचन क्षेत्र में आए तक नहीं। उनसे चुनावी वादे पूरे करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। दरअसल चुनावी वादे करना जनता को लालच देना है। भारतीय भोली-भाली जनता उनके लालच में आ जाती है और जब चुनाव जीत जाते हैं तब उनकी आँखें उन्हें खोजती रहती हैं। चुनावी वादे कभी-कभी राजनेता ऐसे करता है जो उसके अधिकार क्षेत्र तक में नहीं आते। एक चुनावी सभा में एक नेता को जनता से वादा करते सुना कि अगर वह यह चुनाव जीत गया तो अपने निर्वाचन क्षेत्र की जनता को मुफ्त राशन मुहैया कराएगा, सरकारी वाहनों में मुफ्त यात्रा उपलब्ध कराएगा। किसी को बिजली का बिल भरना महीं पड़ेगा और न ही पानी का देना पड़ेगा। जनता उसके चुनावी वादे के जाल में फंस गई और उसे चुनाव जितवा दिया। चुनाव हुए दो साल हो गए हैं कथित नेता के आज तक तो क्षेत्रवासियों ने दर्शन किए नहीं। वस्ततः जनता को ही समझदार बनना होगा। उसे सच्चे नेता की पहचान करनी होगी। नेता की क्षमता और राजनीतिक सोच-समझ और छवि निरख कर ही वोट देना होगा। देखना होगा कि जो चुनावी वादे कथित नेता कर रहा है वह उसे पूरा कर भी पाएगा या नहीं। जनता को नेता के चुनावी वादों को अनदेखा करना चाहिए। उसे साफ छवि के नेता का चुनाव करना चाहिए ताकि अपनी क्षमता से अपनी क्षेत्रीय जनता के अनुरूप काम कर सके।