Chandra Shekhar Venkatraman “चन्द्रशेखर वेंकटरमण” Essay in Hindi, Best Essay, Paragraph for Class 8, 9, 10, 12 Students.

चन्द्रशेखर वेंकटरमण

Chandra Shekhar Venkatraman

भारत के महान वैज्ञानिक चन्द्रशेखर वेंकटरमण का जन्म 17 नवम्बर, 1888 को तिरुचिरापल्ली नामक स्थान पर मद्रास में हुआ था । इनके पिता चन्द्रशेखर अय्यर एक अध्यापक थे । चन्द्रशेखर की प्रारंभिक शिक्षा निगचिरापल्ली और विशाखापत्तनम में हुई । पिता के मित्र श्रीनिवास आयंगर के संपर्क में आकर वेंकटरमण अँगरेजी में विद्वान बन गए । माँ पार्वती ने पुत्र को अच्छे संस्कारों से युक्त बनाया।

वेंकटरमण ने मात्र चौदह वर्ष की आयु में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली । इस परीक्षा में उन्हें सबसे अधिक अंक प्राप्त हुए। फिर रमण ने मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से ऊँची शिक्षा प्राप्त की। उनकी प्रयोगों में बहुत रुचि थी। वे छटी के दिनों में भी वैज्ञानिक प्रयोगों में जुटे रहते थे। उन्हें एम. ए. की परीक्षा में सबसे अधिक अंक मिले । भौतिकी में उन्हें स्वर्णपदक मिला। रमण के प्रयोगों के निष्कर्ष लंदन की प्रसिद्ध पत्रिका में प्रकाशित हुए । प्रकाश संबंधी इन निष्कर्षों ने विज्ञान की दुनिया में तहलका मचा दिया। उन्हें दुनिया भर के विद्वानों के प्रशंसा-पत्र मिले । रमण ने यह सिद्ध कर दिया कि प्रकाश तरंग की भाँति व्यवहार करता है । यह भी पता चला कि प्रकाश कणों से बना हुआ है।

पढ़ाई पूरी कर रमण वित्त विभाग की प्रतियोगी परीक्षा में भारत भर में प्रथम स्थान पर आए । उन्हें डिप्टी एकाउण्टेंट जनरल के पद पर नियुक्त किया गया । कुछ समय बाद उन्होंने विवाह कर लिया । फुर्सत पाकर वे वज्ञानिक खोज के काम में जुट गए । साथ ही साथ उनका तबादला भी होता रहा । उनके प्रयोग समय-समय पर प्रसिद्ध पत्रिकाओं में छपते रहे । उनका नाम विज्ञान के क्षेत्र में चारों ओर फैल गया।

रमण ने ध्वनि के कंपनों का अध्ययन किया । उन्हें भौतिकी विश्वकोश के लिए लेख तैयार करने के लिए बुलाया गया । सन् 1917 में वे सरकारी नौकरी छोड़कर कोलकाता विश्वविद्यालय में प्राचार्य बन गए । यहाँ उन्होंने पूरा समय देकर अनुसंधान कार्य किया । उनकी खोज का प्रमुख विषय ‘प्रकाश’ था । उन्होंने प्रकाश के चलने के मार्ग का अध्ययन किया । इस विषय में उन्होंने एक सिद्धांत निकाला जिसे ‘रामन प्रभाव’ कहा जाता है। उनके प्रयोग का समाचार दुनिया भर में फैल गया । चारों ओर उनकी प्रशंसा होने लगी।

रमण के काम से खुश होकर अँगरेज़ी सरकार ने उन्हें ‘सर’ की उपाधि प्रदान की । फिर उन्हें विश्व का सबसे बड़ा सम्मान ‘नोबेल पुरस्कार’ देकर सम्मानित किया गया । भारतवासी इस पुरस्कार का समाचार सुनकर गर्व करने लगे । अनेक देशों की विज्ञान संस्थानों ने रमण को बुलाकर सम्मानित किया । रमण की गिनती संसार के महान वैज्ञानिकों में होने लगी।

विज्ञान के क्षेत्र में रमण ने कई अनुसंधान-लेख छपवाए । वे 1948 तक भारतीय विज्ञान संस्थान के डायरेक्टर पद पर कार्य करते रहे । फिर उन्होंने बंगलौर में रमण रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की । सन् 1995 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया । इतना सम्मान पाकर भी वे विनम्र बने रहे । उन्होंने अपने कार्यों से भारत का नाम पूरी दुनिया में फैलाया । 21 नवम्बर, सन् 1970 को उनका स्वर्गवास हो गया । परंतु उनका यश आज भी जीवित है । चन्द्रशेखर वेंकटरमण का भारत के गौरव को बढ़ाने में बहुत बड़ा योगदान है।

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