बुद्ध जयन्ती
Buddha Jayanti
बुद्ध धर्म की स्थापना करने वाले महात्मा बुद्ध का जन्म ईसा से पाँच सौ वर्ष पूर्व माना जाता है। इनके पिता राजा शुद्धोदन थे व माता का नाम महामाया। राजा शुद्धोदन शाक्य वंश के प्रमुख शासकों में से एक थे। इसी वंश में भगवान् राम का जन्म हुआ था।
माता महामाया कपिलवस्तु से अपने मायके जा रही थीं। रास्ते में लुम्बिनी वन में दो शालवृक्षों के बीच गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। बालक गौतम को लेकर माता वापस राजधानी कपिलवस्तु लौट गईं। इस बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया। राज्य भर में बालक का जन्मदिन धूम-धाम से मनाया गया। माता के देहान्त के बाद गौतम का पालन सौतेली माँ और मौसी महाप्रजापति के हाथों हुआ।
गौतम बचपन से ही गंभीर प्रवृत्ति के थे। हर बात को बड़ी गंभीरता से सोचा करते थे। युवा होते ही इनका विवाह अति सुंदर राजकुमारी यशोधरा के साथ कर दिया गया। क्षत्रिय राजकुमार होते हुए भी गौतम जीव-जंतुओं का शिकार नहीं करते थे। इसके विपरीत गौतम काफी दयावान थे। वे किसी की भी पीड़ा देखते तो उनका दिल भर आता था। वे द्रवित हो उठते थे। उनके जीवन में ऐसी कई घटनाएँ हुई जिनसे उनका मन हर मोह-माया से विमुख हो गया। उन्हें अपने पुत्र तक से मोह नहीं रहा। न राजमहलों का सुख-वैभव उन्हें लालायित कर सका।
एक दिन वे रात को चुपचाप घर से निकल गए। शरीर से राजसी वस्त्र व आभूषण उतार दिए। वे इस खोज में निकल पड़े कि मनुष्य को दुखों और कष्ट से कैसे मुक्त किया जा सकता है। वे कई स्थानों पर भटकते रहे। फिर बोधगया के समीप निरंजना नदी के तट पर एक वन में तपस्या-लीन हो गए। उन्होंने 6 वर्ष तक कठोर तप किया। लेकिन जो ज्ञान वे पाना चाहते थे वह नहीं मिला। व्यर्थ अपनी काया को कष्ट देने या इसे सुखाने से ज्ञान नहीं मिलेगा ।
आखिर वे एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गए। वहीं उन्हें एक रात प्रातः होने से पूर्व ज्ञान मिला। उस दिन भी बैसाख पूर्णिमा ही थी।
गौतम सारनाथ पहुँचे। वहाँ पाँच शिष्य बनाकर अपने संघ की स्थापना की। यहीं से बुद्ध धर्म का प्रचार शुरू हुआ। बड़े-बड़े विद्वान, राजा, साधु सभी उनके शिष्य बनने लगे। धीरे-धीरे उनका अपना परिवार भी उनके संघ में सम्मिलित हो गया। उनके शिष्य राजा से लेकर रंक, हर वर्ग, हर जाति के लोग बन सकते थे।
बुद्ध पूर्णिमा के रूप में उनका जन्म-दिवस मनाकर उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पित किए जाते हैं। उनकी शिक्षाओं और उपदेशों का पालन करने का व्रत लेते हैं। जो बौद्ध धर्म के अनुयायी नहीं हैं वे भी बहुत श्रद्धा से उनका स्मरण करते हैं। बुद्ध दया और करुणा के अवतार थे।
बुद्ध के मंदिरों में उत्सव मनाया जाता है। कहीं बौद्ध भिक्षुओं को भोजन आदि करवाया जाता है। बुद्ध ने पाँच शील निर्धारित किये थे-ये पाँच शील के नाम से प्रसिद्ध हैं। ये हैं-
- किसी जीव की हत्या नहीं करनी चाहिए। अर्थात् हिंसा छोड़ें, अहिंसा को अपनाएँ।
- चोरी नहीं करनी चाहिए।
- झूठ नहीं बोलना चाहिए।
- किसी प्रकार का नशा नहीं करना चाहिए।
- ये सब मनुष्य के जीवन में दुख और कष्टों की वृद्धि करने वाले होते हैं।
बौद्ध धर्म के अनुयायी इस दिन को दीपावली की तरह बहुत धूम-धाम से मनाते हैं। जापान में 8 अप्रैल को बुद्ध का जन्मदिन मनाते हैं। यह दिन ज्ञान देने वाला दिन है। त्याग, संयम और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाला दिन है। उनके उपदेश विश्व शांति, अहिंसा और दया का संदेश देते हैं। इनकी जयन्ती मनाते हुए इनके उपदेश और शिक्षाओं का पालन करने का संकल्प लेना चाहिए।
कैसे मनाएं बुद्ध जयन्ती
How to celebrate Buddha Jayanti
- आयोजन स्थल को सजाएँ।
- बुद्ध का फोटो लगाएँ, दीप जलाएँ, माल्यार्पण करें।
- बुद्ध का सारा जीवन त्याग, करुणा और दया से भरा हुआ है। उनके जीवन के ऐसे प्रसंगों को बच्चों को सुनाया जाए। कुछ प्रसंग और घटनाओं को नाट्य-रूप में पेश किया जा सकता है।
- बुद्ध का संक्षिप्त जीवन-परिचय सुनाया जाए।
- बच्चों में बुद्ध के जीवन की घटनाएँ व संस्मरण सुनाने की प्रतियोगिता की जाए।
- बुद्ध के वचनों को पोस्टर पर लिखकर विद्यालय में लगाएँ ।
- बुद्ध ने पाँच शील निर्धारित किये थे । उन पाँचों शील के बारे में बच्चों को बताया जाए।
- पाँचों शील को सुंदर पोस्टर पर लिखकर विद्यालय में लगाया जाए।