Bhukamp Shetra ka Drishya “भूकंप क्षेत्र का दृश्य” Hindi Essay 500 Words, Best Essay, Paragraph, Anuched for Class 8, 9, 10, 12 Students.

भूकंप क्षेत्र का दृश्य

Bhukamp Shetra ka Drishya

आठ अक्टूबर 2015 की सुबह कश्मीर-वासियों के लिए तबाही का पैगाम लेकर आई। लगभग आठ बजकर पैंतालीस मिनट पर कुछ क्षणों के लिए धरती में कम्पन हुआ। फिर चारों ओर तबाही ही तबाही दिखी। प्रकृति को किसी सीमा में नहीं बांधा जा सकता। इस भूकम्प से भारत के हिस्से वाले कश्मीर के साथ-साथ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में भी भारी तबाही हुई। इसमें 4000 से अधिक जानें गईं। जान-माल का भारी नुकसान हुआ। चारों ओर चीख-पुकार सुनाई दे रही थी। अनेक लोग अपने ही घर में जिन्दा दफन हो गए। इस त्रासदी में अनेक स्कूली बच्चे मारे गए, क्योंकि उस दिन कश्मीर में स्कूल खले थे। जिधर देखो वहीं तबाही ही तबाही। इस त्रासदी का भारतीय सैनिकों ने डटकर मुकाबला किया।

सैनिकों ने तरन्त मौके पर पहुँचकर अनेक लोगों की जान बचाई। कम्प के बाद सेना वहाँ लोगों को फिर बसान मला हुइ हा वहा बड़ा मात्रा में राहत सामग्री की आवश्यकता पड़ रही है. लोगों के पास आने वाली सर्दी में सिर छुपान का बड़ा समस्या है। भारतीय सेना उनके लिए घर बना रही है। प्रश्न 7. ‘किसान का संघर्ष’ अथवा ‘बढ़ते अपराध’ विषय पर एक आलेख लिखिए।

उत्तरकिसान का संघर्ष-किसान का जीवन संघर्षपूर्ण है। उसका व्यवसाय ही संघर्ष है। वह खेती के लिए जितनी मेहनत करता है उतना उसे धन प्राप्त नहीं होता। उसे प्रकृति भी धोखा देने से बाज नहीं आती। पहले तो बरसात न होने के कारण खेती बरबाद हो जाती है और कहीं फसल कृत्रिम जल व्यवस्था से तैयार कर भी ली तो उसे प्राकृतिक आपदा खत्म कर दता है। ऐसा कई बार होता है. किसान अपनी लहलहाती फसल देखकर फूला नहीं समाता और कुछ देर बाद ही अचानक बाढ़ आ गई। उसकी लहलहाती हँसती-खेलती खेती कीचड़ हो गई या भीषण तूफान आया और उसकी फसल कुचलता हुआ निकल गया। उसकी बरसभर की मेहनत मिट्टी में मिल जाती हैं। खेती हो तो उसके जीवन का आधार है। उसी से वह अपनी रोटी कमाता है, बच्चों की दैनिक जरूरत पूरी करता है और उससे ही अपने सामाजिक खर्च पूरे करता है। जब खेती बरबाद हो जाती है तब उसकी ये सारी समस्याएँ ज्यों की त्यों खड़ी रहती हैं। अगर किसान की फसल बच गई तो उसे बाजार तक पहुंचाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। बाजार में बिक गई तो उसका धन प्राप्त करने के लिए सेठ-साहकारों के दर पर ऐड़ीयाँ रगड़नी पड़ती हैं। जो पैसा फसल बेचकर घर में आता है वह उनसे अपनी दैनिक ज़रूरत पूरी करने की सोच ही रहा होता है कि सेठ साहुकार और दूसरे लोग उसके दर पर कर्ज वसूल करने के लिए चल पड़ते हैं। जो बचता है वह कर्ज उतारने में लगा देता है। सेठ-साहुकारों से उधार लेकर अपना फिर व्यवसायी जीवन शुरू करता है और फिर संघर्ष करता है। जैसा संघर्ष उसके जीवन की जन्म कुंडली में लिखा है उससे निजात जीवन भर मिलने वाली नहीं।

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