भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन
Bhrashtachar Virodhi Andolan

Hindi-Essays
आज भारत का सबसे गर्म और चर्चित विषय है-चारों ओर फेला भ्रष्टाचार। भ्रष्टाचार लगभग पूरी तरह अपनी जड़ें जमा चुका है। भ्रष्ट लोगों ने अपनी एक समांतर व्यवस्था बना ली है। जैसे सरकार एक निश्चित नियम और क्रम से चलती है, उसी प्रकार भ्रष्टाचार ने भी एक सीढ़ी बना ली है। हालत यह हो गई है कि देश का हर आदमी किसी-न-किसी डंडे पर लूटका है। कोई सीढ़ी के शीर्ष पर बैठा है तो कोई अतिम सिरे पर बैठा है। जो कोई इस सीढी के बाहर है वह तब तक सबको कोस रहा है जब तक कि वह उस सीढ़ी पर कहीं-न-कहीं अपने पैर न टिका ले। कभी-कभी कुछ सिरफिरे लोगों की आत्मा जाग उठती है। वे बेबाक होकर सत्य और भ्रष्टाचार-विरोध का दांडाबुलद कर लेते हैं। उनकी आवाज में सत्य होता है, इसलिए वे अंधेरे में सूरज की तरह से चमकने लगते हैं। लोग उनका वाणी से चमत्कृत होकर उनके पीछे लग लेते हैं। बाबा रामदेव हों या अन्ना हजारे या अरविंद केजरीवाल-सभी यकायक देश के क्षितिज पर छा जाते हैं। किंतु उनके अनुयायी वे ही होते हैं, जो कि किसी-न-किसी व्यवस्था से जुड़ होते है। आंदोलन के नशे में आकर वे नारे तो लगाना शरू कर देते हैं, किंतु भ्रष्ट व्यवस्था में से रास्ता नहीं बना पाते। उन्हें पग-पग पर संकटों में से गुजरना पड़ता है। फिर वे जिस परिवार या समाज का अंग होते हैं, वे सब भी भ्रष्ट समाज की व्यवस्था के हिस्से होते हैं। अतः भ्रष्टाचार विरोधी लोगों को अंदर और बाहर, समाज और घर, अपनों और परायों-सबसे लड़ना पडता है। कुछ चीजों के उत्तर उनके पास नहीं होते। अतः वे भी काम चलाने क लिए समझौते करने शुरू कर देते हैं। इस प्रकार आंदोलन दम तोडना शरू कर देते हैं। पिछले वर्षों में भारत में नारी की आबरू को बचाने के लिए आंदोलन शुरू हुए, भ्रष्टाचार के विरोध में आंदोलन हुए, भारत का विदेशी बैंकों में गया पैसा वापस लाने के लिए आंदोलन हुए। परंतु लोग बताते हैं कि न तो भ्रष्टाचार कम हुए, न नारियों की इज्जत लुटना बंद हुई और न विदेश से पैसा भारत में आया। तो क्या निराश हुआ जाए? नहीं, ये कुआँ खोदने जैसा काम है। अभी कुआँ पूरी तरह से खुदा नहीं है। जैसे दर्जी द्वारा सिली जाने वाली कमीज़ तब आकार लेती है, जब वह पूरी तरह से सिल जाती है, उसी तरह ये आंदोलन ठीक दिशा में उठाए गए कदम हैं। इनका स्वस्थ रूप किसी-न-किसी दिन अवश्य दिखाई देगा।