भारत पाक सीमा का दृश्य
Bharat Pakistan Seema ka Drishaya
मैं भारत-पाक सीमा पर खड़ा हूँ। प्रतीक्षा कर रहा हूँ कब मेरा स्थल सेनाध्यक्ष मुझे आदेश दे और मेरी एके सैंतालीस से गोलियाँ निकलकर दुश्मनों की छाती को बेधती चली जाएँ। मैं बचपन से ही यही सपना देखा करता था। मैंने अपनी दसवीं की कक्षा में एक किताब में पढ़ा था-जो भरा नहीं है भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं। वह मनुज नहीं पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। उस दिन से ही मैंने निर्णय कर लिया था कि मैं बालिग होकर देश की सेना में भर्ती होऊँगा और उन दुश्मनों को छठी का दूध याद दिलाऊँगा जो मेरी धरती को अपने नापाक कदमों से दूषित कर रहे हैं। मुझे अपनी सीमा पर कोई तकलीफ नहीं है। मुझे बर्फ से डर नहीं लगता। उस हाड़ कँपकँपाती ठंढ से भी नहीं लगता जो मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों को गरम कपड़े पहनकर, हीटर लगाकर सोने को विवश कर देती है। मेरी आँखों की तो दुश्मन की तलाश है। मुझे अधिकारियों ने दूरबीन आदि उपकरण दे रखे हैं जिनसे अपने हिस्से आए एक किलोमीटर की सीमा की निगरानी करता हूँ। जब भी मुझे किसी घुसपैठ की आहट सनाई देती है तत्काल हथियार तन जाता है। एक वर्ष से मेरी सीमा पर ड्यूटी है और इस दौरान पन्द्रह घुसपैठिए पकड़ कर अपने अधिकारियों को सौंप चुका हूँ। तेरह आतंकवादियों का सफाया कर चुका हूँ। मेरी तो एक ही ख्वाहिश है कि जब भी मरूँ दुश्मन को मार कर मरूं। मैं चाहता हूँ कि हँसते-हँसते अपने देश के लिए कुर्बान हो जाऊँ। बस यही चाह है-हर करम तेरा करेंगे हे वतन तेरे लिए। दिल दिया और जाँ भी देंगे, ऐ वतन तेरे लिए।