भारत में लोकतंत्र
Bharat main Loktantra
भारत लोकतांत्रिक देश है। अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र की परिभाषा दी है। कहा है, ‘जनता के लिए जनता के द्वारा जनता की सरकार’। देश में यही सरकार शासनरत है। लोकतंत्र के चारों स्तंभ न्यायपालिका, कार्य पालिका, समाचारपत्र, तथा विधायिका, यहाँ स्वतंत्र हैं। लोकतंत्र की आधारशिला चुनाव हैं। यहाँ प्रत्येक पाँच वर्ष बाद चुनाव नियमित होते हैं। लोकतंत्र में व्यक्ति को स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है।
यह विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहाँ अठारह वर्ष की महिला और पुरुष को मतदान का अधिकार प्राप्त है। भारत में लोकतंत्र की यह एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन भारत के करीब तीस प्रतिशत मतदाता अशिक्षित हैं। दस प्रतिशत ऐसे मतदाता हैं कि जिनकी आयु 18 से बीस वर्ष है। भारत में इस आयु को विवाह का दायित्व के अयोग्य समझा जाता है लेकिन वह अपनी सरकार चुनने के पक्ष में अपनी राय दे सकता है। इस दृष्टि से यह योग्य है। अमेरिका के राष्ट्रपति कनैडी ने कहा था,” जनतंत्र में एक मतदाता का अज्ञान सबकी सुरक्षा को संकट में डाल सकता है। भारत में लगभग तीस प्रतिशत ऐसे मतदाता हैं। इतने ही कम से कम ऐसे हैं जिनमें वोट देने की समझदारी नहीं है। ऐसे में लोकतंत्र की सार्थकता पर प्रश्नचिह्न लग जाना स्वाभाविक है। वे मतदाता जो वोट के महत्त्व को नहीं समझते उन्हें धन के बल पर राजनीतिक दल अपने पक्ष में कर लेते हैं। कुछ जाति के दबाव में आकर वोट डालते हैं, कुछ से मतदान में गड़बड़ी करवा ली जाती है।
प्लेटो ने लिखा है जहाँ के मतदाता मूर्ख हैं, वहाँ उसके प्रतिनिधि धूर्त होंगे। इसी तहर बर्नाड शॉ ने लिखा है. सच्चा देश भक्त, त्यागी नेता चुनाव के रेगिस्तान में निरर्थक फसल बोता-बोता दम तोड़ देता है। लेकिन धुर्त और छली मैदान मार जाता है। वस्तुतः लोकतंत्र आस्था के बल पर चलता है। भारत के शीर्ष नेता तक आस्था और विश्वास का गला घोट देते हैं। स्वाथ के लिए दलबदल कर देते हैं। जनता का विश्वास तोड़ देते हैं। भारत का प्रधानमंत्री लोकतंत्रात्मक पद्धति से प्रधानमंत्री पद प्राप्त करता है। लोकतंत्र में न्यायपालिका स्वतंत्र है। लोकतंत्र को नुकसान करने में प्रशासन की सस्ती, भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, प्रशासनिक अधिकारियों के प्रमाद ने बड़ी भूमिका निभाई है। अगर ऐसा न होता तो मथुरा में कंस लीला न होती। कुछ चौकड़ी ने पुलिस प्रशासन को चुनौती दी और संघर्ष में कुछ पुलिस अधिकारी समेत कई जनता के लोग मारे गए। उनमें कुछ निर्दोष भी हो सकते हैं। मीडिया लोकतंत्र को आस्थावान बनाता है। लेकिन कई बार सत्ता के विरुद्ध लिखने पर जान से हाथ धोना पड़ता है। बिहार में पत्रकार की हत्या इसका ताजा उदाहरण है। हमारे विचार में लोकतंत्र भारत माता का सुहाग चिह्न है। जैसे मंगलसूत्र और बिछ्वे से यह जानकारी ली जा सकती है कि इसका पति जीवित है या नहीं उसी तरह लोकतंत्र से देश की जानकारी ली सकती है कि देश सुखी है या नहीं। भारत के लोकतंत्र रूपी सुहाग को कई प्रकार ठेस पहुंचाई गई है पर यह भारत में आज भी जीवित है। आखिर लोकतंत्र हो तो भारत के हित में है।