Bharat ki Samajik Samasyayen “भारत की सामाजिक समस्याएँ” Hindi Essay 500 Words, Best Essay, Paragraph, Anuched for Class 8, 9, 10, 12 Students.

भारत की सामाजिक समस्याएँ

Bharat ki Samajik Samasyayen

भारत को इक्कसवीं शताब्दी में प्रवेश किए दो दशक होने को है। लेकिन आज भी इसकी सामाजिक समस्याएँ जस की तस हैं। आज भी भारतीय समाज असाध्य रोगों से ग्रसित है। अनेक कुप्रथाओं से घिरा है, अनेक अंधविश्वासों, रूढ़ियों से प्रताडित है। आज के वैज्ञानिक युग में बहुत-से भारतीय पुरानी नुकसान पहुंचाने वाली परम्पराओं और रूढ़ियों को छोड़ने को तैयार नहीं हैं। दूसरे देश कहीं से कहीं पहुंच गए हैं पर भारत आज भी तंत्र-मंत्र की परम्पराओं में बुरी तरह उलझा है।

समाज में फैले अंधविश्वास को देखिए। किसी ने छींक दिया तो नौकरी पर जाना बंद। चाहे उसका नौकरी का आज पहला ही दिन क्यों न था। पानीभरा लौटा किसी के हाथ से गिर गया तो समझो कि काम न होगा। अगर कोई एकनेत्री ब्राह्मण मिल गया तो समझो कि अशुभ हो गया। कभी नारी की इस देश में सब जगह पूजा होती थी। कहा भी गया है कि ‘यत्र नारी पजयन्ते तत्र रमते देवता। पर भारतीय समाज में नारी आज तरह-तरह के अत्याचारों से ग्रसित है। पर्दा प्रथा, अनमेल विवाह, बाल-विवाह आदि कप्रथाओं से नारी पर अत्याचार किए जा रहे हैं। विधवा विवाह का निषेध आज भी दूर-दराज क्षेत्रों में देखा जा सकता है। बहुविवाह की परंपरा आज भी जिंदा है। सहिष्णुता की नारी आज भी कर्त्तव्यशीलता की बलि वेदी पर चढ रही है। आर्थिक पराध निता के कारण आज भी उसे पुरुषों के पाँव की जूती बने रहना पड़ता है। भोग-विलास की प्रतिमा और घर की नौकरानी के अलावा उसकी कोई कीमत नहीं। दहेज प्रथा से आज भी देश जल रहा है। हजारों कन्याओं का जीवन शुरू होते ही मृत्यु की गोद में समा जाता है। उचित दहेज न मिलने पर आज भी नारी का जबरदस्त उत्पीड़न किया जाता है। वर पक्ष को तो उसके जीने से ही नफरत होने लगती है। नतीजतन छत से कूदकर अथवा नहर में डूब कर या आग लगाकर आत्महत्या करनी पड़ती है। जो लोग दहेज प्रथा के खिलाफ शोर मचाते हैं वे अपने बेटे को बेचने से भी. बाज़ नहीं आते।

परे देश में गुंडागर्दी का आलम है। शरीफ सुरक्षित नहीं है। चैन स्नेचर गली-गली में घूम रहे हैं, रोजाना बलात्कार हत्या | लट-खसोट, डकैती आदि घटनाएँ घट रही हैं। भ्रष्टाचार तो समाज में इतना बढ़ा है कि बिना कुछ लिए-दिए काम होता ही नहीं | है। लगता है जीने के लिए भ्रष्टाचार आवश्यक हो गया है।

जातिवाद भारतीय समाज का रक्षक भी है और भक्षक भी है। जातिवाद के नाम पर दलित वर्ग पर प्रतिदिन अत्याचार हो रहे हैं। कर्म के आधार पर कभी जातिवाद रहा होगा पर आज यह जन्म के आधार पर चल निकला है। इससे देश में असमानता की स्थति हो उठी है। धर्म के नाम पर देश को विभाजित करने की चाल चली जा रही है। इस तरह देश अनेक सामाजिक समस्याओं से ग्रसित है। सरकार को इन समस्याओं को कारगर तरीके से खत्म करना होगा। लेकिन बिना व्यक्ति के सहयोग के इन समस्याओं पर विजय नहीं प्राप्त की जा सकेगी।

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