भगतसिंह जयन्ती (Bhagat Singh Jayanti)
सरदार भगतसिंह आजादी की लड़ाई के एक ऐसे सिपाही थे जिनका नाम लेने मात्र से किसी भी देशभक्त की धमनियों में रक्त खौल उठता है। भगतसिंह आज भी युवा शक्ति के प्रतीक बने हुए हैं ।
पाकिस्तान स्थित लाहौर के पास ही एक गाँव है, सांडा। इसी गाँव में एक मामूली किसान सरदार किशनसिंह के घर पैदा हुए थे भगतसिंह । किशनसिंह रूढ़िवादिता, अंधविश्वास व व्यर्थ के ढकोसलों में विश्वास नहीं रखते थे। खुले विचारों के थे किशनसिंह। पिता के विचारों का असर भगतसिंह पर पड़ा। वे भी खुले विचार वाले थे। समाज-सेवा की ओर प्रारंभ से झुकाव था।
भगतसिंह के चाचा अजीतसिंह ने भी आजादी की लड़ाई में भाग लिया था। वे काफी समय तक फरार रहे। उनके क्रांतिकारी विचारों का असर भगतसिंह पर भी पड़ा। वे भी देश की आजादी के लिए शुरू किये। गए असहयोग आंदोलन से जुड़ गए। यहाँ तक कि स्कूल तक छोड़ दिया। कॉलेज में पढ़ते समय इनका ध्यान क्रांतिकारी आंदोलन की तरफ गया। अपने अन्य मित्रों के साथ राष्ट्रीय भावना का प्रचार करने लगे । इनके रोम-रोम में राष्ट्र के प्रति अगाध प्रेम था ।
भगतसिंह के पिता चाहते थे कि जल्दी से भगतसिंह की शादी कर उस पर गृहस्थी की जिम्मेदारी सौंप दी जाए। भगतसिंह को यह स्वीकार नहीं था। उन्होंने घर छोड़ दिया और एक अखबार में काम करने लगे। दिल्ली के ‘अर्जुन’ अखबार को छोड़कर कानपुर चले गए। वहाँ गणेश शंकर विद्यार्थीजी के सहयोग से ‘प्रताप’ अखबार में काम करने लगे।
सन् 1928 में लाहौर में किसी ने बम फेंक दिया था। पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया। पर सबूत नहीं मिलने पर छोड़ दिया। इसके बाद वे स्वयं देश के प्रमुख भागों में घूम-घूमकर क्रांतिकारी गतिविधियों व संगठन को मजबूत करने में जुट गए। तब इनके साथ शिवराम वर्मा व सुखदेव भी जुड़ गए थे। सभी प्रान्तों के क्रांतिकारी संगठन की एक केन्द्रीय समिति बनाई। इसे नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी। चन्द्रशेखर आजाद को इसका कमांडर-इन-चीफ बनाया गया ।
संगठन को चलाने के लिए पैसा चाहिए था। इसके लिए बनी योजना कारगर नहीं हुई।
ब्रिटेन से आ रहे ‘साइमन कमीशन’ के विरोध स्वरूप ‘बहिष्कार आंदोलन’ छेड़ा गया। प्रदर्शन के दौरान 17 नवंबर, 1928 को सैंडर्स की लाठी से लाला लाजपतराय का देहान्त हो गया। यह आजादी की लड़ाई की एक दुखद घटना थी। पूरे देश में शोक फैल गया। सारा देश रोया । युवकों का तो खून खौल उठा। भगतसिंह कैसे चुप बैठते। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि लालाजी के हत्यारे सैंडर्स और लाठीचार्ज का आदेश देने वाले स्कॉट को मौत के घाट उतार दिया जाए। प्रस्ताव मंजूर हुआ। 17 दिसंबर, 1928 को भगतसिंह, चन्द्रशेखर और राजगुरु ने सैंडर्स को गोली मार दी।
देश के नौजवान राष्ट्र का अपमान नहीं सह सकते इसलिए यह बदला लिया। इसी अवसर पर ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा लगा।
कलकत्ता में भगतसिंह की मुलाकात यतीन्द्रनाथ दास से हुई। उन्हीं से भगतसिंह ने बम बनाना सीखा।
8 अप्रैल, 1929 को विधानसभा में अंग्रेज वायसराय द्वारा दो बिल पास किये जाने थे। भारतवासियों के दमन के लिए कोई बिल कैसे पास हो सकता था। भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने विरोध स्वरूप विधानसभा में बम फेंके। एक परचा अपने दल की तरफ से बाँटा जिसकी पहली लाइन थी-बहरों को सुनाने के लिए धमाके की आवश्यकता थी।
भगतसिंह व बटुकेश्वर दत्त ने अपने आपको पुलिस के हवाले कर दिया। इन पर जेल में ही मुकदमा चला। देश के युवाओं में जोश और गुस्सा था। जेल में इन्हें पूरी सुविधा नहीं मिलने के विरोध स्वरूप देश में भूख हड़ताल का सिलसिला चला। इसी में यतीन्द्रनाथ दास शहीद हो गए। 7 अक्टूबर, 1930 को भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरु तथा शिवराम को फाँसी की सजा सुनाई गई।
सारे देश में जबरदस्त आंदोलन हुए, हड़तालें हुईं, ट्रेनें रोकी गईं। सरकार का काफी नुकसान हुआ पर सरकार झुकी नहीं। भगतसिंह के पिता ने सरकार से अपील की कि मेरे बेटे को जीवनदान दे दिया जाए। यह बात जब भगतसिंह को पता चली तो बहुत दुखी होते हुए बोले, “मेरे पिता ने मेरी पीठ में छुरा भौंका है।”
गांधीजी ने भी वायसराय को अनुरोध किया कि इन्हें फाँसी के बजाय आजीवन कारावास दे दिया जाए। पर अंग्रेज सरकार ने 24 मार्च, 1931 को फाँसी का दिन तय किया और 23 मार्च को ही फाँसी दे दी। तब भगतसिंह की आयु मात्र 23 वर्ष थी।
भगतसिंह में राष्ट्रप्रेम अगाध था । अदम्य साहस था। बलिदान और त्याग की प्रबल भावना थी। इन्हीं गुणों के कारण वे देश के युवा-हृदय सम्राट बन गए।
ऐसे व्यक्ति की गौरव गाथा का स्मरण कर देश के बच्चों को प्रेरित किया जाना चाहिए।
कैसे मनाएँ भगतसिंह जयन्ती (How to celebrate Bhagat Singh Jayanti)
- भगतसिंह का चित्र लगाएँ ।
- दीपक, अगरबत्ती जलाएँ । माल्यार्पण करें।
- भगतसिंह देशभक्त और साहसी थे। उनका जीवन रोमांच और जोश से भरा था। उनमें कुछ करने की लगन थी। उनकी जीवनी में से ऐसे ही प्रसंग और घटनाएँ बच्चों को सुनाई जाएँ।
- उनका संक्षिप्त परिचय दिया जाए।
- भगतसिंह के साथ राजगुरु और सुखदेव को भी फाँसी दी गई थी। फाँसी पर एक साथ चढ़ने वाले तीनों देशभक्त मित्रों के उन कामों से बच्चों को परिचित कराया जाए जिनके कारण इन्हें फाँसी दी गई।
- फेंसी ड्रेस प्रतियोगिता में भगतसिंह की वेश-भूषा धारण करायी जाए।
- ‘इंकलाब जिन्दाबाद’ का नारा भगतसिंह ने दिया था, बच्चों को इसका अर्थ बताया जाए और वह घटना जब भगतसिंह ने यह नारा बुलन्द किया था ।
- भगतसिंह के प्रेरणादायक कथन पोस्टर पर लिखकर लगाए जाएँ।