Bazar Ka Drishya “बाजार का दृश्य” Hindi Essay 250 Words, Best Essay, Paragraph, Anuched for Class 8, 9, 10, 12 Students.

बाजार का दृश्य

Bazar Ka Drishya 

हमारे क्षेत्र में प्रत्येक शुक्रवार बाजार लगता है क्योंकि यह शुक्रवार को लगता है इसलिए इसका नाम शुक्र बाजार पड़ गया है। इस बाजार में भाग लेने वाले दूर-दूर से आते हैं। बाजार दोपहर बाद लगना शुरू हो जाता है। करीब चार बजे मुहल्ले के लोग शक्र बाजार के लिए निकल पड़ते हैं। महिलाओं में तो यह बाजार खासा लोकप्रिय है। जैसे दोपहर बाद दुकानदार अपनी-अपनी दुकानें लगाना शुरू कर देते हैं वैसे-वैसे महिलाएं भी सखी-सहेलियों के साथ इस बाजार की चर्चा करना शुरू कर देती हैं। कुछ तो बाजार में घर का ज़रूरी सामान लेने के लिए निकलती हैं और कुछ ऐसी हैं जो केवल इस बाज़ार में घूमने की इच्छा से ही चली आती हैं। दरअसल महिलाओं की इस बाजार के संबंध में कुछ मानसिकता ही ऐसी है कि यहाँ बाज़ार से सस्ती और अच्छी चीजें मिलती हैं। बाजार में हर तरह का सामान मिलता है। यहा रेडीमेट गारमेंट से लेकर सुई-धागा तक मिलता है। यहाँ तक की एक गली में सब्जी मंडी तक लगी होती है। क्योंकि बाजार सस्ता है इसलिए इसमें आम तौर पर गरीब लोग ही सामान खरीदते मिलेंगे। दिनभर दिहाडीदार मजदूर चाहे पूरे हफ्ते पैसे न मिलें पर शुक्रवार को जरूर मांगते हैं क्योंकि उन्हें शुक्र बाजार जरूर जाना होता है। यह बाजार महिलाओं में इसलिए भी लोकप्रिय है कि अगर चीज़ खराब निकल जाए तो अगले हफ्ते बदली जा सकती है। स्वयं मेरी माता जी इस बाजार में हर हफ्ते जाती है और कोई न कोई चीज़ ज़रूर खरीद कर लाती है। अकेली नहीं जाती। किसी न किसी को जरूर ले जाती है। महिलाओं को चाहे कुछ खरीदना न हो पर शुक्र बाजार का नशा जरूर होता है। इस बाज़ार का एक फायदा तो अवश्य है कि इसके भरोसे कितने ही लोगों के पेट पल रहे है।

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