बढ़ती जनसंख्या–दर, घटती सुविधाएँ
Badhti Jansankhya- Ghatati Suvidhaye
भारत विकासशील है लेकिन इसकी बढ़ती जनसख्या उसके विकास को रोक रही है। जनसंख्या किसी भी राष्ट्र की शक्ति है। उसके बल पर राष्ट्र संपन्न होता है। विकसित राष्ट्र जनशक्ति के बल पर विश्व में गर्व करता है। लेकिन जनसंख्या का ज्यादा बढ़ना उसके लिए विभिन्न समस्याएँ पैदा करता है। अधिक जनसंख्या होगी तो सरकार उनके लिए अधिक सुविधाएँ नहीं जुटा सकती। बल्कि उनके लिए सुविधाएँ घटती चली जाएँगी। जब 1951 में जनगणना की गई थी तब देश की जनसंख्या 36 करोड़ थी और 2012 में यह एक सौ बीस करोड़ हो गई है। भारत में जनसंख्या बढ़ने
के मख्य रूप से तीन कारण हैं। पहला कारण विवेक की कमी, दूसरा सत्ताधारियों में इच्छा शक्ति का अभाव और तीसरा | वोट बैंक का मोह। आज भी भारत की लगभग 30 प्रतिशत जनता अशिक्षित है। लगभग इतनी ही जनता गरीबी रेखा के नीचे
जीवन व्यतीत कर रही है। काम ही उनके आनंद का स्रोत है और इसकी संतुष्टि में जनसंख्या बढ़ती चली जाती है। ये बच्चे गरीबी में पलते हैं, अशिक्षित रह जाते हैं और युवा होकर समाज विद्राही बन जाते हैं। आपात्काल में नसबंदी को कठोरता से लागू किया गया। इसका परिणाम सुखद हुआ पर इस नियम को कठोरता से लागू करने वाली प्रधानमंत्री चुनाव हार गई। उनके बाद जो भी सरकारें आई उन्होंने इस संबंध में मौन धारण कर लिया। जनसंख्या ज्यादा होगी तो न तो सुविधापूर्वक भोजन मिल पाएगा, न ही सुविधापूर्वक वस्त्र मिल पाएंगे और न ही मकान। राशन की दुकानों पर राशन कम पड़ जाएगा, बाजार में महँगी चीजें मिलेंगी जिन्हें प्राप्त करना ज्यादा संख्या वाले परिवारों के लिए मुश्किल हो जाएगा और रहने को अच्छे मकान नहीं मिल पाएँगे। ऐसे में अगर व्यक्ति जीवन अर्जन के लिए सुविधाएँ उचित मात्रा में चाहता है तो उसे जनसंख्या पर नियंत्रण करना होगा। इसके अतिरिक्त जो विदेशी अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं उन्हें सम्मानपूर्वक अपने देश भेजना होगा। इससे हमारी जनसंख्या के लिए चीजों का अभाव न होगा।