बड़े शहरों में जीवन की चुनौतियाँ
Bade Shahro me Jeevan Ki Chunautiya
आज बड़े शहरों में आम आदमी के लिए जीवन जीना मुश्किल होता जा रहा है। अमीर लोगों के लिए तो इन शहरों में जीवन अर्जित करना कठिन नहीं है क्योंकि वे साधन संपन्न हैं परन्तु मध्यवर्गीय और जनसाधारण लोगों को यहाँ रहने में परेशानी महसूस हो रही है। बड़े शहरों, जिन्हें महानगर भी कह सकते हैं, रोटी, कपडा और मकान महँगे हो गए हैं और लगातार होते जा रहे हैं। छोटे शहरों में जो मकान दो-तीन हजार रुपए प्रति महीना किराए पर मिल जाता है, वह बड़े शहरों में सात-आठ हज़ार बल्कि दस हजार रुपए महीने पर मिल रहा है। छोटे शहरों में दो-तीन हजार रुपए प्रति महीना रसोई पर खर्च होते हैं जबकि बड़े शहरों में यह खर्च सात-आठ हजार रुपए प्रति माह में चल पाता है, वह भी हाथ भींच कर। मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग के लोगों के लिए तो बड़े शहरों में अपना अस्तित्व बनाए रखना कठिन हो गया है। स्कूलों में विद्यार्थियों की फीस बहुत बढ़ गई है। यातायात की समस्या भीषण रूप धारण कर चुकी है। बड़े शहरों में प्रदूषण ज्यादा होने के कारण लोग बीमार ज्यादा रहने लगे हैं। इससे उनका दवाइयों पर खर्च ज्यादा बढ़ गया है। बड़े शहरों में लोगों का जीवन भी सुरक्षित नहीं है। जरा-सी बात पर मार-पीट और गोली चल जाना आम बात है। महिलाओं पर होने वाले अपराधों में भी महानगरों में बढ़ोतरी हुई है। दहेज हत्या, बलात्कार, चेन-झपट, चोरी-डकैती और ठगी की घटनाएँ बड़े शहरों में अधिक घट रही हैं। एक बड़ी चुनौती बड़े शहरों की यह है कि लोग आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं। कहीं किसी के साथ कोई दुर्घटना घटती है तो उससे कोई मतलब नहीं रखते। कोई सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त है तो उसे बचाने के लिए नहीं आते। जब महानगरों में इतनी बड़ी चुनौतियाँ हों तब कौन आएगा यहाँ रहने? पर करें भी क्या? रोजगार के धंधों में विविधताएँ तो बड़े शहरों में ही हैं। इसलिए दो वक्त की रोटी अर्जित करने के लिए मध्यवर्ग और साधारण वर्ग को बड़े शहरों में आना पड़ता है।