बदल रहा है मेरा गाँव
Badal Raha Hai Mera Gaon
भारत गाँवों में बसता है। यह प्राकृतिक सषमा का घर है। यह भारत के लोगों के लिए दूध, दही, घी, अन्न आदि देता है। अन्न, फूल और फल देता है, साग-सब्जी देता है। खेतों के लिए किसान, सेना के लिए जवान, मजदूरी के मज़दूर गाँव से ही मिलते हैं। दूसरी ओर गाँव देश की पिछड़ी बस्ती रहा है। दरिद्रता की साकार प्रतिमा रहा है। अज्ञान और अशिक्षा की धरती रहा है। रोग और अभावों का अड्डा रहा है। मुकदमेबाजी का अखाड़ा रहा है। सेठ साहुकारों के लिए लूट का अड्डा रहा है। भारतीय गाँव सभ्यता और आधुनिक सुख-सुविधाओं से वंचित रहा है। लेकिन अब पहले जैसे गाँव नहीं रहे हैं। अब गाँव बदल रहे हैं। इनमें नई चेतना का विकास हुआ है। आर्थिक शोषण से मुक्ति मिली है। इसके लिए गाँव-गाँव सहकारी बैंक खुले हैं। जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ है। ज़मीदारों की जमीन छीन कर किसानों को बाँट दी गई है। भूदान-यज्ञ ने किसानों को मालिक बना दिया है। भूमि कानून लागू हुआ है इससे भूमि सीमा निश्चित कर दी गई है। छोटे खेतों की समस्या का समाधान चकबंदी से हो गया है। गाँव को शिक्षित करने के लिए स्कूल-कॉलेजों की स्थापना हो गई है। रेडियो दूरदर्शन जहाँ फसल उगाने की तकनीक बता रहे हैं, वहीं फसल को शहर तक पहुँचाने की गाँवों की पक्की सड़क बना दी गई हैं। ग्राम्य जीवन सुधार कार्यक्रम चल रहे हैं। अब शहर की हर सुविधाएँ गाँवों में मौजूद हैं। अब पहले जैसे गाँव नहीं रहे हैं, गाँव बदल रहा है।