अतिथि : देवता या समस्या
Atithi Devta Ya Samasya
अतिथि का अर्थ है ऐसा आगन्तुक जिसके आने का समय निश्चित नहीं था, लेकिन अचानक आ गया है। जाहिर है ऐसे । अतिथि पर मन में दो भावनाएँ पैदा होती हैं, एक तो अचानक आने पर मन में अपूर्व प्रसन्नता होती है दूसरे अतिथि आने पर परिवार में तनाव पैदा हो जाता है। कारण उक्त परिवार को उस व्यक्ति के रहने-सहने, खाने-पीने के लिए अलग प्रबंध करना होगा। हो सकता है आर्थिक दृष्टि से अतिथि की सेवा करने में अपने आपको असमर्थ अनुभव कर रहा हो। अगर अतिथि परिवार का निकटतम सबंधी है तो उसके आने पर परिवार इतना व्यथित नहीं होता, लेकिन कोई दूर-दराज का आ जाए तब वास्तव में दिक्कत होती है। उसके आने के दिन से ही यह सोच लग जाती है कि यह व्यक्ति न जाने कब जाएगा?
वर्तमान समय में जीवन इतना गतिशील हो गया है कि परिवार में सभी सदस्य व्यस्त हैं। किसी के पास एक पल समय नहीं। है। आज परिवार के सदस्यों के लिए व्यक्ति के पास समय है नहीं, अतिथि के लिए कहाँ से निकाला जा सकता है? परिवार के सभी सदस्यों के कामकाजी होने के कारण अतिथि का आना एक समस्या बन गया है। यह तो हुआ एक पक्ष दूसरा पक्ष यह है कि कोई भी अतिथि समस्या नहीं हो सकता, क्योंकि वर्तमान समय में किसी के पास दूसरों के घर जाने के लिए तथा उनके साथ गप्पे लड़ाने का समय नहीं है। व्यक्ति आवश्यकता, मजबूरी अथवा किसी त्योहार या उत्सव आदि के समय किसी के घर जाता है। ऐसे में अतिथि समस्या कैसे बन सकता है? जो व्यक्ति कभी-कभार किसी के घर जाता है उसकी आवभगत अवश्य होती है। उसके लिए वक्त निकाला जाता है, ऐसा माना जाता है कि उसने भी अपने कीमती समय में से हमारे यहाँ आने के लिए समय निकाला है।
अतः अतिथि की अवहेलना नहीं की जानी चाहिए। उसे समस्या नहीं समझा जाना चाहिए। उसके साथ दो बातें करके समय अच्छा व्यतीत होता है। प्रसन्नता होती है। समस्या अतिथि बन सकता है तब जब किसी के घर आकर जम जाए और जाने का नाम न ले। ऐसे में वह परिवार का बजट खराब कर देता है।