अनेकता में एकता
Anekta mein Ekta
हिन्दी की विशेषता अनेकरूपता किसी राष्ट्र की जीवन्तता, सम्पन्नता तथा समृद्धि की द्योतक है। भारत विभेदों का समुद्र है, शायद इसलिए इसे उपमहाद्वीप माना जाता है। यहाँ ढाई कोस पर बोली बदलती है। यहाँ विविध धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। परिधान की विविधता में सतरंगिता के दर्शन होते हैं। रुचि की विविधता तथा जलवायु की आवश्यकता के अनुसार खान-पान में विभिन्नता है, पर ये विभिन्नताएँ भारतीय संस्कृति की एकता की पोषक हैं। भाषाओं के भेद के बावजूद विचारों की एकरूपता कभी खंडित नहीं हुई। समस्त साहित्य में एकात्मकता के दर्शन होते हैं। विभिन्न धार्मिक-उपासना पद्धतियों एवं मान्यताओं के बावजद सब में एक भावना है, एक दर्शन है। हमारा भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ विविधता में एकता दिखाई देती है, अनेकता में एकता है। भले ही इस देश में जाति, धर्म, भाषा, प्रदेश आदि के भेद विद्यमान हैं, तथापि भारत में एक ऐसी मूलभूत (बनियादी) एकता पाई जाती है, जो सांस्कृतिक एकता है और यह सदा पाई जाती रही है। यदि ऊपरी भेदभाव को ओझल कर हम गहराई से सोचे. तो एकता हमें अब भी अटूट मिलती है।
भाषा-भेद, जाति-भेद और सम्प्रदाय भेद तो इंग्लैंण्ड, अमेरिका, फ्रांस आदि देशों में भी बहुत है, परन्तु अलग-अलग अंग होते हुए भी जैसे शरीर एक है, उसी प्रकार हमारा देश भी अनेक विभिन्नताओं के होते हुए भी एक है। वास्तव में हमारे देश की विशेषता है, (1) यहाँ सभी धर्मों के महान पुरुषों का सदा समान रूप से आदर होता आया है और आज भी होता है।
हिंदओं, पारसियों, सिखों आदि में अनेक बातें समान हैं। इस्लाम और ईसाई मजहबों ने जहाँ भारतीय संस्कृति को प्रभावित किया है, वहाँ उन पर भी भारतीय संस्कृति का कम प्रभाव नहीं पड़ा। हमारे समाज में भेद और अभेद दोनों हैं, परंतु भेदों की तह में एक गहरा अभेद पाया जाता है।
प्राचीन काल से भारतीय धर्म तथा साहित्य हमें राष्ट्रीय एकता का पाठ पढ़ाते रहे हैं। सब काव्य ग्रंथ चाहे वे उत्तर के हों या दक्षिण के, रामायण तथा महाभारत को अपना प्रेरणा स्रोत मानते रहे हैं। कालिदास और भवभूति आदि कवियों ने उत्तर भारत और दक्षिण भारत का सुंदर वर्णन किया है। भारत की सभी दिशाओं में अनेक पवित्र तीर्थ हैं। ये हमारी सांस्कृतिक एकता के प्रमाण हैं। सात पुरियों तथा चार धामों की यात्रा भारत के सभी भागों के निवासी समान श्रद्धा से करते हैं।
देश में प्रचलित प्राय: सभी भाषाओं का कोई-न-कोई रूप संस्कृत भाषा से संबद्ध है। उर्दु को छोड़कर प्रायः सभी भारतीय लिपियों में पर्याप्त समानता है। भारत के भिन्न-भिन्न भागों में हुए महापुरुषों, कवियों तथा भक्तों का सारे देश में, सभी प्रदेशों में समान रूप से सम्मान किया जाता है। उनकी उक्तियाँ सारे देश में, सब लोगों की जुबाँ पर हैं।
वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, जयदेव, मीरा. भूषण, कबीर, दादू, तुलसी, सूर, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, संपूर्ण भारत के हैं। किसी एक प्रदेश के नहीं हैं। हमारा राष्ट्रीय गीत-जनगणमन एक है। यद्यपि उसे एक बंगाली ने लिखा था।
हमारी जातीय मनोवृत्ति, जीवन-दर्शन, रहन-सहन, रीति-रिवाज, उठने-बैठने का ढंग, चाल-ढाल, वेश-भूषा, साहित्य, संगीत तथा कला में भारी एकता है, जो राष्ट्रीय एकता का प्रबल प्रमाण है।