अबला नहीं है नारी
Abla Nahi hai Nari
नारी अबला नहीं है, सबला है। उसमें शक्ति है। वह शक्तिशालिनी है। महर्षि वेदव्यास ने तो सेवा को ही स्त्री का है। महाकवि जयशंकर प्रसाद ने कहा है: नारी माया ममता का बल, वह शक्तिमयी छाया शीतल। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने नारी की शक्ति से इस प्रकार परिचित कराया है, “जहाँ कहीं दु:ख-सुख की लाख-लाख धाराओं में अपने को दलित द्राक्षा के समान निचोड़कर दूसरे को तृप्त करने की भावना प्रबल है, वही नारी तत्त्व है या शास्त्रीय भाषा में कहें तो शक्ति तत्त्व है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने नारी की शक्ति को पहचाना है। उन्होंने कहा है, “तुम विश्व की पालनी, शक्ति की धारिका हो, शक्तिमय माधुरी के रूप में इसलिए नारी सबला है। ईरान के शहंशाह ने नारी की शक्ति को यों अभिव्यक्त किया है-
सात सलाम उस नारी को जो माँ है युवराज की
बादशाह उससे डरते हैं क्योंकि सत्ता उसकी गोद की।
इस प्रकार नारी को अबला कहना उचित नहीं है, वह तो शक्ति है। इसी शक्ति को हमने आज की परिस्थिति के अनुकूल बनाना है। उसे उन सब अधिकारों को दिलाना है जो परुषों को प्राप्त हैं। इसलिए उसकी किसी भी क्षेत्र में उपेक्षा नहीं करनी है।
नारी शक्तिशाली होगी तो देश शक्तिशाली होगा। नारी को केवल घर तक सीमित नहीं रखना है। उसे उन सबमें पारंगत बनाना है जिनमें पुरुष है। और यह काम हो भी रहा है। देश के प्रत्येक कर्मक्षेत्र में आज नारी पुरुषों के बराबर काम कर रही है। कहीं कहीं तो उसने पुरुषों को भी मात दे दी है। आज की नारी शिक्षित हो रही है। और इसी आधार पर वह देश के महत्त्वपूर्ण सेवा क्षेत्रों में अपनी सेवाएं प्रदान कर रही है। क्या अस्पताल, क्या शैक्षणिक संस्थाएँ, क्या पुलिस क्षेत्र, क्या क्रीडा क्षेत्र, क्या मनोरंजन क्षेत्र, क्या इंजीनियरिंग क्षेत्र, क्या अंतरिक्ष क्षेत्र, क्या पर्वतारोहण, कहने का अर्थ है ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहाँ नारी ने अपनी शक्ति का परचम नहीं फहराया है। डॉ. रामकुमार वर्मा ने नारी की शक्ति को पहचानकर लिखा था, “यदि नारी वर्तमान के साथ भविष्य को भी अपने हाथ में ले लो तो वह अपनी शक्ति से बिजली की तड़प को भी लज्जित कर सकती है।”
वर्तमान सरकारें भी नारी को सशक्तिशाली बनाने में जुटी हैं। इससे परिवारों की आर्थिक स्थिति सुधरी है और उनका समाज में मान बढ़ा है। देश भी अब अच्छी तरह समझ गया है कि नारी सशक्तिकरण से देश बहुमुखी उन्नति कर सकता है।