आज का युवा संसार
Aaj Ka Yuva Sansaar
युवा या युवक अर्थात् शरीर मस्तिष्क आदि से पूरी तरह विकसित, शिक्षा और कार्य कर सकने की शक्ति से सम्पन्न होता है। इसीलिए यौवन में कदम रखते ही उसके जीवन में कई तरह के निर्वाह का दौर आरम्भ हुआ मान लिया जाता है। अतः घर-परिवार, आस-पास का समाज, जाति, देश और सारा राष्ट्र भी उससे कई प्रकार की आशाएँ करने लगता है। जिस घर-परिवार, देश-जाति ने उसे पाल-पोस कर बड़ा किया है; योग्य, शक्ति-सम्पन्न एवं कार्य कर पाने में समर्थ बनाया है, इसलिए उसके बदले में कुछ चाहना अनुचित नहीं कहा जा सकता।
महात्मा गाँधी, पं. जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, सरदार पटेल आदि भरपूर जवानी के क्षणों में ही सब प्रकार के सांसारिक सुखों को लात मारकर स्वतन्त्रता संग्राम में कूदे थे, चन्द्रशेखर आजाद, अशफाक उल्लाह, सुखदेव, राजगुरु, रामप्रसाद बिस्मिल आदि ने देश-जाति को स्वतन्त्र देखने के लिए जब विदेशी सरकार के अत्याचारों का शिकार होकर संसार का त्याग कर दिया था, उनके जख्म भी न भर पाए थे कि अनेक युवक सीना तानकर ब्रिटिश सरकार की लाठियाँ और गोलियाँ सहते रहे। इन्हीं युवाओं के बलिदान का परिणाम है कि आज हम एक स्वतन्त्र देश में साँस ले पा रहे हैं।
आज का युवा वस्तु-स्थिति को भली प्रकार समझता अवश्य है उसके भीतर नया कुछ करने की कसमसाहट भी अधिक होती है। वह किसी प्रकार की सामाजिक, राजनीतिक बुराई, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, कुनबादारी, कालाबाजारी आदि को कतई पसंद नहीं करता। आज के युवाओं को स्वयं से ही मार्ग पूछकर अपने आप ही निर्णय लेना होगा कि उसे कहाँ से और क्या शुरू करना है, जिससे देश जाति के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह कर सके। जब वह ऐसा सब करने का दृढ़ निश्चय कर लेगा, तो फिर कोई भी बाधा उसे कुछ कर गुजरने से रोक नहीं पायेगी।
हर युग की युवा शक्ति से उसका देश और समाज उन्नति और विकास सम्बन्धी तरह-तरह की आशाएँ करता है। युवा वर्ग जो भी इच्छा करे, थोड़ा सा प्रयत्न करके उसे अवश्य पूरा कर सकता है इसलिए आज के सन्दर्भ में देश और जाति के युवा वर्ग का यह कर्त्तव्य हो जाता है कि उन्हें जिन समस्याओं और विषम परिस्थितियों व प्रश्नों का सामना करना पड़ता है, वे ही आगे बढ़कर और निरन्तर प्रश्न करके उन सबसे छुटकारा दिलाएँ। क्योंकि आज की सूझ बूझ वाली जागरूक और सतर्क युवा शक्ति ही आगे बढ़कर, सक्रिय होकर देश व जाति को इन सभी समस्याओं व विषमताओं से छुटकारा दिला सकती है। क्योंकि इतिहास भी इस बात का गवाह है कि प्रत्येक समझदार और योग्य कहे जाने वाले व्यक्ति ने इस प्रकार से विस्तार पाए हुए अपने दायित्वों का निर्वाह प्राण-प्रण की बाजी लगाकर किया है।