Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Cinema”, “सिनेमा – चलचित्र”, Hindi Anuched, Nibandh for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students.

सिनेमा (चलचित्र)

(Cinema)

 केवल मनोरंजन ही न कवि का कर्म होना चाहिए।

उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए।।

भूमिका-विज्ञान ने इस युग में मनुष्य के मनोविनोद के लिए अनेक साधन उपलब्ध कराए हैं। दिन भर का थका-हारा मनुष्य सरस और सस्ते मनोरंजन की तलाश में होता है। सिनेमा मानव के मन-बहलाव का सबसे उत्तम साधन है। इसकी लोकप्रियता इसी से प्रतीत होती है कि सिनेमा घर आज छोटे-छोटे कस्बों में भी बने हुए हैं। दर्शकों की भीड़ टिकट ब्लैक में लेकर भी सिनेमा का आनंद लेना चाहती है।

प्राचीन आमोद-प्रमोद के साधन-बीसवीं शताब्दी से पूर्व लोग नाटक, नौटंकी, कठपुतली का खेल, रासलीलाओं तथा नाच-गानों से अपना मनोरंजन करते थे। समय के बहाव में अब लोगों के पास इतना समय कहाँ, जो सारी-सारी रात जाग कर आनंद ले सकें। आज तो व्यक्ति कम समय में अधिक आनंद लेना चाहता है। वह समय के मूल्य को जान गया है।

मनोरंजन के अन्य साधन-आजकल कुछ ऐसे मनोरंजन हैं, जिनको साधारण आदमी सोच भी नहीं सकता। घुड़दौड़, पर्यटन करना, होटलों या क्लबों में जाकर नृत्य आदि के द्वारा मनोरंजन, ये अमीरों के चोचले हैं। यही कारण है कि सिनेमा की टिकट लेने वालों की लंबी पंक्ति लगी होती थी.

चलचित्र स्वाभाविक अभिव्यक्ति-सिनेमा के द्वारा किसी घटना को स्वाभाविक रूप से प्रदर्शित किया जाता है तथा इसके द्वारा जीवन के वास्तविक तथ्यों से अवगत कराया जाता है। सुंदर दृश्य, मन्त्रमुग्ध गीत-संगीत कुछ क्षणों के लिए व्यक्ति को चिंताओं से मुक्ति दे देते हैं। मनुष्य उसकी स्वर लहरी में तन्मय हो जाता है।

चलचित्र का आविष्कार-सन् 1880 ई. में एडिसन नामक अमेरिकी वैज्ञानिक ने कैमरे का निर्माण कर इस कला को जन्म दिया।

भारत में चलचित्र-सन 1926 के आस-पास सर्वप्रथम ‘आलम आरा’ नामक मूक चित्र से भारत में चलचित्र का आगमन हुआ। परन्तु आज भारत चलचित्र जगत के इने-गिने देशों में से एक है। भारत के चलचित्र देश-विदेशों में भी विख्यात हो चुके हैं।

शिक्षा की प्रगति में सहायक-आज भारत जैसे विकासशील देश को शिक्षा के प्रसार के लिये प्रचार की अत्यंत आवश्यकता है। विज्ञान, इतिहास और भूगोल जैसे विषयों को चलचित्र द्वारा बातों ही बातों में समझाया जा सकता है। नवीन ज्ञान की जानकारी देने में चलचित्र महान भूमिका निभाता है।

सामाजिक चेतना में सहायक-आज आवश्यकता उन जीर्ण-शीर्ण रूढ़ियों को तोड़ फेंकने की ‘है. जिनके कारण हमारे समाज का पतन हुआ। अच्छे चलचित्र यह भूमिका निभा रहे हैं। सुजाता में छुआछूत का ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत किया गया। जिस देश में गंगा बहती है, मदर इंडिया, जाग्रति, आनंद, मिली, वक्त, आक्रोश, शहीद आदि फिल्मों का समाज पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा है।

देशभक्ति की भावना-सिनेमा मानव को देश के प्रति अपने कर्तव्य के लिए जागरूक कर सकता है। शहीद भगत सिंह, उपकार, कर्मा जैसे अनेक चल-चित्र देशुभक्ति की प्रेरणा देते हैं।

दुष्प्रभाव-लाभकारी चलचित्र अब समाज के लिये घातक सिद्ध हो रहा है। समाज के दुश्मन फिल्म निर्माता अश्लील चित्र बनाते हैं जिनमें मद्यपान, बलात्कार, अर्ध नग्न दृश्य, मुक्त चुंबन, कैबरे, लूटपाट, तथा समाजविरोधी अनेक गतिविधियों को प्रदर्शित करने की होड़ लगी रहती है। जिसके कारण अनैतिक घटनाओं तथा अपराधों में वृद्धि हो रही है। समाज का युवा वर्ग चलचित्रों को देखकर अपनी संस्कृति से दूर होकर पश्चिम का अंधानुकरण कर रहा है। समाज का घोर पतन हुआ है।

आज के चलचित्रों के अश्लील और कामुक दृश्य विद्यार्थियों के अपरिपक्व मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव डाल रहे हैं। आज का विद्यार्थी सिनेमा देखने के लिये पढ़ाई से जी चुराता है, समय तथा धन का अपव्यय करता है। उनमें अनुशासनहीनता, चरित्र-हीनता एवं अन्य दुर्गुण पनप रहे हैं।

उपसंहार-चलचित्र निर्माताओं को चाहिए कि मारधाड़, नग्न प्रदर्शन वाली तथा समाज पर दुष्प्रभाव डालने वाली फिल्में न बनाएँ। उन्हें चाहिए कि वे अपने उत्तरदायित्व को समझें तथा ऐसे । चलचित्रों का निर्माण करें जो देश एवं समाज के विकास एवं पुनर्निर्माण में सहायक हो।

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