Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Mohandas Karamchand Gandhi”, “मोहनदास कर्मचंद गांधी”, Hindi Anuched, Nibandh for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students.

मोहनदास कर्मचंद गांधी

Mohandas Karamchand Gandhi

“चल पड़े जिधर दो डगमग में, चल पड़े कोटि पग उसी ओर।

पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि, गड़ गए कोटि दृग उसी ओर।।”

भूमिका-महात्मा गांधी के संदर्भ में कवि की उपर्युक्त उक्ति अक्षरशः सत्य है। भारत महापुरुषों की जन्मभूमि है। जब-जब इस पुण्य भूमि पर रावण और कंस जैसे लोगों ने अत्याचार किया तब-तब राम और कृष्ण जैसे महापुरुषों ने उनका संहार कर लोगों की रक्षा की। महात्मा गांधी की गणना ऐसे ही महापुरुषों में की जा सकती है, जिसने भारत को दासता से मुक्त कराने में सत्य और अहिंसा के हथियार का प्रयोग किया।

जन्म एवं शिक्षा-काठियावाड़ गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर 2 अक्तूबर, 1869 को वैश्य परिवार में कर्मचंद के घर एक पुत्र ने जन्म लिया, जिसका पूरा नाम मोहनदास कर्मचंद गांधी रखा गया। आपके पिता राजकोट रियासत के दीवान थे। माता पुतलीबाई बड़ी धर्मनिष्ठ और साध्वी स्वभाव की थी। आपकी प्रारंभिक शिक्षा राजकोट की पाठशाला में हुई। तेरह वर्ष की छोटी-सी आयु में ही आपका विवाह कस्तूरबा से हो गया। पोरबंदर से मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद कानून की शिक्षा प्राप्त करने के लिये माता-पिता ने आपको इंग्लैंड भेजा। जाने से पूर्व माता जी ने मांस न खाने, परस्त्री गमन न करने और शराब न पीने की प्रतिज्ञा करवा ली थी, जिनका आपने दृढ़तापूर्वक पालन किया। आप तीन वर्ष बाद बैरिस्टर बनकर भारत लौटे।

अफ्रीका प्रवास-सन् 1891 में भारत लौटने पर वकालत प्रारंभ की। कुछ दिनों के बाद एक मुकदमे की पैरवी के लिये आप अफ्रीका गए। वहाँ भारतीयों की दयनीय दशा देखकर हृदय को बहुत ठेस पहँची। गोरे और काले के भेद को मिटाने के लिये गांधी जी ने सत्याग्रह का मार्ग अपनाया। उन्होंने वहाँ पर कांग्रेस की स्थापना की। दो वर्ष पश्चात अपने उद्देश्य में सफल होकर स्वदेश लौटे।

भारत में स्वतंत्रता संग्राम-अपने देश की दीन-हीन दशा देखकर देश को स्वतंत्र कराने में जुट गए। जगह-जगह जा कर भाषण दिए। 1919 में गांधी ने असहयोग आंदोलन चला दिया। गांधी के आह्वान पर अनेक विद्यार्थी अपनी शिक्षा छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। कितने ही भारतीयों ने अंग्रेजों की नौकरी का बहिष्कार किया। आपने सन 1930 में नमक सत्याग्रह आंदोलन छोड़ा और डांडी यात्रा की।

अछुतोद्धार के प्रयत्न-1933 में गांधी जी ने हरिजनों के उद्धार के लिए उपवास किया। इस प्रकार छुआछूत मिटाने का प्रयत्न किया। स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने का सुझाव दिया।

भारत छोड़ो आंदोलन-1942 में गांधी जी ने- अंग्रेज़ों, भारत छोड़ो’ का नारा लगाया। इस आंदोलन से एक क्रांति-सी मच गई। अंत में सत्य और अहिंसा की जीत हुई।

भारत की स्वतंत्रता-15 अगस्त, 1947 को भारत स्वाधीन हो गया, परंतु अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति से देश का विभाजन कर दिया। विभाजन के साथ ही सांप्रदायिकता भड़क उठी। मनुष्य भेड़ बकरियों की तरह कटने लगे। गांधी जी ने इसे रोकने के लिये उपवास किया और हिंदू-मुस्लिम एकता स्थापित की।

बलिदान-30 जनवरी, 1948 के दिन जब वे प्रार्थना सभा में जा रहे थे, नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति ने तीन गोलियां चलाईं जिससे भारत का महान संत, अहिंसा का पुजारी इस देश को रोता बिलखता छोड़कर चल बसा।

यद्यपि गांधी जी इस संसार में नहीं हैं परंतु उनकी शिक्षाएँ हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं और आगे भी करती रहेंगी।

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