मनुष्य को सोच-समझकर ही कार्य करना चाहिए
Manushya ko Soch-Samajhkar hi Karya Karna Chahiye
एक किसान ने एक नेवला पाल रखा था। नेवला बहुत चतुर तथा स्वामीभक्त था। एक दिन किसान कहीं बाहर गया हुआ था। किसान की स्त्री ने अपने छोटे बच्चे को दूध पिलाकर सुला दिया।
नेवले को वहीं छोड़कर वह घड़ा और रस्सी लेकर कुएँ पर पानी भरने चली गई। पीछे से वहाँ एक काला साँप बिल में से निकल कर आ गया। बच्चा पृथ्वी पर कपड़ा बिछा कर सुलाया गया था। साँप बच्चे की ओर ही आ रहा था। नेवले ने यह देखा तो साँप के ऊपर टूट पड़ा। उसने साँप के टुकड़े-टुकड़े कर मार डाला और घर के दरवाजे पर किसान की पत्नी की राह देखने लगा।
किसान की स्त्री पानी का घड़ा भर कर लौटी। उसने घर के दरवाजे पर नेवले को देखा। नेवले के मुख में रक्त देखकर उसने सोचा कि इसने मेरे बच्चे को काटा है। क्रोध के मारे उसने अपना घड़ा उस नेवले पर पटक दिया। बेचारा नेवला मर गया।
किसान की स्त्री अंदर आई। उसने देखा की बच्चा सुख से सो रहा है और वहाँ एक साँप कटा पड़ा है। स्त्री को अपनी गलती का पता लग गया। वह दौड़कर फिर नेवले के पास आयी और नेवले को उठाकर रोने लगी, पर अब रोने का क्या लाभ। इसीलिए गिरधर कवि ने कहा है।
बिना बिचारे जो करे, सो पाछे पछताय।
काम बिगारे आपनो, जग में होत हँसाय।।
शिक्षा-मनुष्य को सोच-समझकर ही कार्य करना चाहिए।