वर्षा का एक दिन
Varsha ka Ek Din
अगस्त का महीना था। एक दिन बहुत गर्मी पड़ रही थी। उमस में हर सक्ति पसीने से नहाया हुआ था। हवा का नाम भी नहीं था। पेड़ का एक पत्ता भी नहीं हिल रहा था। सभी बेहाल थे। ऐसे में अचानक आकाश में बादल घुमड़ने लगे। पूरी तरह बदली छा गयी।
एकदम अंधेरा हो गया। सूर्य बादलों के पीछे छुप गया। तेज आंधी चलने लगी। बादल गरजने लगे। बिजली चमकने लगी। उसके बाद पानी बरसने लगा। लोग बारिश से बचने के लिये जगह ढूँढने इधर-उधर भागने लगे।
एक घंटा घनघोर बारिश हुयी। जहाँ-तहाँ पानी भर गया। सड़कों और नालियों में पानी बहने लगा। थोडे नीचे स्तर के क्षेत्र एक छोटे तालाब की ‘तरह दिखने लगे। वर्षा की बंदें एक मधुर संगीत उत्पन्न कर रही थीं। सारे वातावरण में इसके अतिरिक्त कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था।
जैसे ही वर्षा रुकी बच्चे घर से बाहर निकल आये। वे भरे हुये पानी में खेलना चाहते थे। उन्होंने एक-दूसरे पर पानी उछाला और खुशी से इधरउधर भागने लगे। मैं भी उनके साथ जाना चाहता था मगर मेरी माँ ने अनुमति नहीं दी। अत: मुझे कागज की नाव को पानी में तैराकर ही संतोष करना पडा। किन्त इस सब में मुझे बहुत आनन्द आ रहा था।
लोग छाते लगाकर साथ आ-जा रहे थे। कुछ लोगों ने बरसातियाँ और टोपियाँ पहनी हुयी थीं। वर्षा के होने से सब प्रसन्न थे।