स्वावलंबन
Swavalamban
स्वावलंबन जीवन के लिए परम आवश्यक है। यह होनहार मनुष्य का लक्षण है, बड़प्पन का साधन है और सुखमय जीवन का स्रोत है। स्वावलंबन का अर्थ है-अपने ऊपर निर्भर होना। स्वावलंबी व्यक्ति सदा स्वतंत्र रहता है। जो व्यक्ति दूसरों का मुँह नहीं ताकते, वही स्वावलंबी होते हैं। गीता का कर्मयोग स्वावलंबन के रूप में ही क्रियान्वित होता है। अंग्रेजी की यह कहावत-“God helps those who help themselves” अर्थात् ईश्वर उनकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करते हैं। यह व्यक्ति को स्वावलंबी होना सिखाती है।
स्वावलंबी व्यक्ति स्वतंत्र होता है। उसका अपने पर विश्वास होता है। वह बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं की भी परवाह नहीं करता। स्वावलंबी व्यक्ति सबके साथ विनम्रता का व्यवहार करके अपने काम में मग्न रहता है। उस पर चाहे कितनी भी विपत्ति आ जाए, वह कभी काम करने से पीछे नहीं हटता। किसी भी कठिनाई से वह हार नहीं मानता। वह हमेशा अपने कार्य में सफल होता है। स्वावलंबी सरलता का व्यवहार करता है और किसी के साथ छल-कपट नहीं करता। वह त्यागी एवं सेवाभावी होता है। उसमें लालच नहीं होता। उसमें असीम उत्साह एवं आत्मविश्वास होता है। वह कभी भाग्य पर आश्रित नहीं बैठता, अपितु अपने भाग्य का स्वयं निर्माता होता है।
स्वावलंबन का गुण हर स्थिति में लाभकारी होता है। स्वावलंबी व्यक्ति विश्वास के कारण उन्नति कर सकता है। उसमें स्वयं कार्य करने और सोचने-विचारने की सामर्थ्य होती है। वह कभी किसी के सहारे की प्रतीक्षा नहीं करता। उसे अपना काम स्वयं करने में अति आनंद मिल है। महापुरुषों ने स्वावलंबन के कारण ही उन्नति की है। स्वावलंबी सभी प्रशंसा करते हैं।
संसार के सभी महापुरुष स्वावलंबन के कारण ही महान बने है। राम ने वन-वन भटककर लंका पर विजय प्राप्त की थी। छत्रपति शिवाजी ने मराठों को एकत्रित करके हिन्दुओं की रक्षा की थी। एकलव्य ने स्वावलंबन के बल पर ही धनुर्विद्या सीखी थी। कोलंबस ने स्वावलंबन से ही अमेरिका की खोज की थी। एक गरीब माता-पिता की संतान अब्राहम लिंकन स्वावलंबन के कारण ही अमेरिका के राष्ट्रपति बने। गाँधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में स्वावलंबन के बल पर ही अंग्रेजी शासकों के अत्याचारों का दमन किया था और बाद में भारत को स्वतंत्रता दिलाई थी।
स्वावलंबन का गुण वैसे तो किसी भी आयु में हो सकता है, परंतु यह बालकों में शीघ्र उत्पन्न किया जा सकता है। यह शिक्षा बालकों को घर पर ही दी जा सकती है। यदि हर मनुष्य में स्वावलंबन का भाव भर जाए तो अकाल, बीमारी, गरीबी आदि हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते।
इस प्रकार स्वावलंबन चरित्र में विकास की प्रथम सीढी है। इससे निडरता, परिश्रम और धैर्य आदि गुणों का विकास होता है। स्वावलंबन से सभी व्यक्ति, समाज और राष्ट्र उन्नति करते हैं। अत: हर मनुष्य को स्वावलंबी होना चाहिए।