मेरा प्रिय स्कूल
Mera Priya School
स्कूल को शिक्षा का मंदिर कहा जाता है। यहाँ पर अध्यापक बच्ची को शिक्षा देते हैं, उन्हें एक काबिल और योग्य इंसान बनाते हैं। गलत और सही का बोध कराते हैं, दुनिया में जीने का सलीका बताते है विद्यालय में वे विद्यार्थियों में सद्गुणों का विकास करते हैं।
मेरा स्कूल भी बहुत प्यारा है। वहाँ सभी अध्यापक मुझे बहुत प्यार करते हैं। कक्षा में अध्यापक इतना अच्छा पढ़ाते हैं कि सब कुछ शीघ्र ही मेरी समझ में आ जाता है। यदि कोई विद्यार्थी पढ़ने में कमजोर होता है, तो अध्यापक उसे छुट्टी के बाद अलग से समय निकालकर पढ़ाते हैं। मेरे स्कूल में कभी कोई विद्यार्थी अनुत्तीर्ण नहीं होता। मेरे स्कूल का परिणाम हर वर्ष शत्-प्रतिशत् रहता है। मेरे स्कूल का कोई विद्यार्थी अलग से ट्यूशन नहीं लेता।
मेरे प्रिय स्कूल में अध्यापक हमें खेल भी खिलाते हैं। वे हमें कबड्डी, खो-खो, बैडमिंटन, क्रिकेट और फुटबॉल खिलाते हैं। खेल के अध्यापक हमें बड़े स्नेह और लगन से हमें खेल सिखाते और खिलाते हैं। वे हम पर कभी नाराज़ नहीं होते। वे हमेशा मुस्कुराते रहते हैं। उनकी वाणी में जैसे मिसरी घुली हुई हो।
मेरे स्कूल में एक बहुत बड़ा खेल का मैदान (प्ले-ग्राउण्ड) है। सभी विद्यार्थी उसी में खेलते हैं। हमारी खेल की टीम दूसरे स्कूलों के साथ भी खेलती है। ये प्रतिस्पर्धात्मक खेल होते हैं। हमारे स्कूल की टीम हमेशा जीतती है। मैं क्रिकेट खेलता हूँ। मैं अपनी टीम का कप्तान हूँ।
मेरे स्कूल में एक कैंटीन है। उसमें चाय, समोसा, बिस्किट आदि मिलता है। कभी-कभी मैं अपने मित्रों के साथ चाय पीता हूँ और समोसे भी खाता हूँ। मेरे स्कूल में एक लाइब्रेरी है। लाइब्रेरी में विषय की पुस्तकों के अलावा समाचार-पत्र और पत्रिकाएँ भी होती हैं। मैं प्रतिदिन लाइब्रेरी में समाचार-पत्र पढ़ता हूँ। इससे मेरा सामान्य ज्ञान बहुत अच्छा हो गया है। सामान्य ज्ञान के अतिरिक्त मुझे देश और दुनिया की भी जानकारी रहती है कि कहाँ पर क्या घटना घट रही है। मेरी इस योग्यता को देखते हुए मेरे कक्षा अध्यापक ने मुझे अपनी कक्षा का मॉनीटर बना दिया है।
सचमुच, मेरा प्रिय स्कूल सबसे अच्छा और अद्भुत है। मुझे मेरा प्रिय स्कूल सदैव स्मरण रहेगा।