Hindi Essay, Paragraph on “Feriwala ”, “फेरीवाला”, Hindi Anuched, Nibandh for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students, Board Examinations.

फेरीवाला

Feriwala 

शहरों में हॉकरों से सभी भलीभांति परिचित होते हैं। इनको फेरीवाला भी कहते हैं। ये फेरीवाले शहर और गाँव दोनों जगह मिल जाते हैं। ये हर गली और मोहल्ले में फेरी लगाते हैं। ये गाँवों की अपेक्षा शहरों में अधिक होते हैं। हम इन्हें सड़कों के नुक्कड़, फुटपाथ, विद्यालयों के गेट के बाहर और मेलों में देख सकते हैं।

ये हॉकर विभिन्न प्रकार के सामान बेचते हैं। कुछ हॉकर साड़ी, तौलिए, चादर, और सस्ते कपड़े बेचते हैं, तो कुछ बर्तन-भांडे, चीनी के बर्तन और रोज़मर्रा की ज़रूरत की वस्तुएँ बेचते फिरते हैं और कुछ फेरीवाले हमें खिलौने, कॉस्मैटिक्स, सिंदूर तथा बिंदी बेचते हुए मिल जाते हैं। गाँव के कुछ हॉकर शहर से वस्तुएँ खरीदते हैं और गाँवों में बेचते हैं। इस प्रकार ग्रामीण लोगों को इन फेरीवालों (हॉकरों) से वे वस्तुएँ भी मिल जाती हैं जो उन्हें गाँवों में आसानी से उपलब्ध नहीं होतीं। कुछ डॉक्टर ठेले या ठेली पर सामान रखकर बेचते हैं. तो कुछ ट्रे (तश्तरी) में रखकर बेचते हैं। गाँवों में कुछ हॉकर टट्ट (छोटा घोड़ा) पर बतन आदि रखकर ले जाते हैं और बेचते हैं। गाँवों में महिलाएँ भी हॉकर होती हैं। कुछ हॉकर सब्जियाँ, दालें व मसाले आदि ढकेल गाड़ी पर रखकर ले जाते हैं।

अधिकांश हॉकर फटे-पुराने कपड़े पहने होते हैं। अक्सर वे धोती और कुर्ता पहनते हैं। कुछेक हॉकर तो बच्चो को आकर्षित करने के लिए अजीबोगरीब कई थिगली वाले, ऊँचे-नीचे, उल्टे-पुल्टे और कई रंगों वाले कपड़े पहनते हैं। ये हॉकर सुबह से शाम तक गली-गली में फेरी लगाकर अपना सामान बेचते हैं। – हॉकरों की विचित्र प्रकार की आवाजें (नारे या कविता आदि) हमें अपनी ओर आकर्षित करती हैं। ये मूंगफली को बादाम और वहीं के संतरों को ‘नागपुर के संतरे’ कहकर आवाज़ लगाते हैं जिससे लोग स्वतः ही उनकी ओर आकर्षित हो जाते हैं। ये बच्चों को आकर्षित करने के लिए कविताएँ गा-गाकर सामान बेचते हैं।

प्रत्येक हॉकर का ग्राहक को अपनी ओर आकर्षित करने का अपना अलग ढंग होता है। वे जानते हैं कि उन्हें अपना सामान कैसे बेचना है। कुछ हॉकर तेज़ आवाज़ में अपना सामान बेचते हैं, तो कुछ मधुर स्वर में गीत गाकर बेचते हैं। कुछ घंटियाँ बजाकर बेचते हैं, तो कुछ नाच-गाकर बेचते हैं। इस प्रकार प्रत्येक हॉकर अपनी अलग शैली में अपना सामान बेचता है।

सड़कों पर हॉकर अपना सामान महंगा बेचते हैं। बाजार उनकी वस्तुओं कर गुणवत्ता भी घटिया होती है। अक्सर वे महिलाओं और बच्चों को फुसलाकर ठगते रहते हैं। हालांकि महिला मोलभाव करके ही सामान खरीदती हैं। गाँवों में हॉकर सामान सामान बेचते हैं। वे अपनी वस्तु के बदले में अनाज लेते हैं।

अक्सर हम देखते हैं कि सड़कों पर हॉकर खाने-पीने की ही ढककर नहीं रखते। उनके खुले सामान पर हमेशा मक्खियाँ भिनभिना रहती हैं और उनके हाथ भी गंदे होते हैं। वे अक्सर बासी और सडी की चीजें बेचते हैं। अतः हमें ऐसे हॉकरों से खाने की वस्तुएँ नहीं खरीदनी चाहिए।

सामान्यत: भारत में अधिकांश महिलाएँ खरीदारी करने बाजार नहीं जातीं। उन्हें हॉकरों से घर बैठे ही ज़रूरत की चीजें मिल जाती हैं।

निष्कर्षतः भारत में हॉकरों का विशेष महत्व है। वे हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो हमें ज़रूरत की दुर्लभ वस्तुएँ घर बैठे ही उपलब्ध करा देते हैं। अतः हमें उनके महत्व को समझकर उन्हें समुचित सम्मान देना चाहिए।

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