निशानेबाजी का खेल
Nishanebaji ka Khel
पाचीनकाल में निशानेबाजी राजा-महाराजाओं और राजकुमारों का जोक हआ करता था। रामायण और महाभारत काल में अधिकांशत: लोग धनुष-बाण चलाना सीखते थे। महाभारत काल में अर्जुन का चिडिया की अँख में निशाना लगाना तो जग-प्रसिद्ध है। धनुष-बाण से निशाना आज भी लगाया जाता है, परंतु अब इसका प्रचलन नगण्य है। आजकल तो लोग पिस्टल अथवा राइफल से निशाना लगाना सीख रहे हैं। हालांकि यह सीखना थोड़ा खर्चीला है, फिर भी आज इसी को महत्व दिया जा रहा है।
हम यहाँ राइफल शूटिंग का वर्णन कर रहे हैं। राइफल शूटिंग समय गुजारने के अतिरिक्त एक प्रतियोगी खेल भी है। इसे सीखने के लिए गहन अभ्यास और लगन की आवश्यकता होती है।
राइफल से निशाना लगाने की शुरूआत 16वीं शताब्दी के मध्य में इंग्लैण्ड में हुई। इससे पहले वहाँ धनुष-बाण से निशानेबाजी करते थे।
केन्द्रीय यूरोप राइफल का जन्म स्थान माना जाता है। सर्वप्रथम राइफल का प्रयोग स्विट्जरलैण्ड और जर्मनी में किया गया था। सबसे पहले राइफल से निशानेबाजी करना मात्र समय गुज़ारना और मनोरंजन था। सेना में इसको बाद में इस्तेमाल में लाया गया था।
राइफल शूटिंग 10 मीटर की रेंज (दूरी) में इन-डोर और आऊट-डोर दोनों जगह की जा सकती है जिसका टारगेट (लक्ष्य) शूटिंग स्टेशन (निशानेबाजी का मंच) के स्तर से 1.5 मीटर की ऊँचाई पर होता है। इसी प्रकार 50 व 300 मीटर की रेंज में भी इन-डोर एवं आऊट-डोर निशानेबाजी की खेल प्रतियोगिता होती है और इसका टारगेट शूटिंग स्टेशन से 50 से.मी. (आधा मीटर) ऊँचा होता है। प्रतियोगिता प्रारंभ होने से पूर्व खिलाड़ियों को प्रशिक्षण अथवा अभ्यास के लिए शूटिंग रेंज उपलब्ध की जाती है। टारगेट एवं शूटिंग ऑर्डर (आदेश) क्रम द्वारा सुनिश्चित किए जाते हैं। निशानेबाजी करते हुए निशानेबाज (शूटर) आगे की ओर झुका हुआ होता है। उसके शरीर का ऊपरी हिस्सा कोहनी पर टिका होता है। राइफल का कुन्दा (बट) कंधे या काँख से लगा होता है और राइफल का शेष भाग कोहनी के नीचे होता है। खिलाड़ी राइफल को अपने हाथों से पकड़े होता है।
निशानेबाज अपने दोनों पाँव पर बिल्कुल सीधे खड़ा होता है। उसके शरीर का कोई भी हिस्सा ज़मीन से स्पर्श नहीं करता है। निशानेबाज राइफल के आगे के हिस्से को हाथ से कंधे से लगातार साधे रहता है। उसके कपोल (गाल) और वक्ष (सीना) का भाग कंधे के नज़दीक होता है। ध्यान रहे, एक निशानेबाज को कृत्रिम सहारे की बिल्कुल अनुमति नहीं होती।
आज भारत निशानेबाजी में सबसे आगे है। भारत के अभिनव बिन्द्रा ने 2008 के ओलंपिक खेलों में निशानेबाजी में स्वर्ण पदक जीता है।
निशानेबाजी में खिलाड़ी को केवल अपने लक्ष्य की ओर ध्यान केन्द्रित करना होता है तभी उसे सफलता मिलती है। आज यह खेल विश्व में हर जगह खेला जाता है।