महात्मा बुद्ध
Mahatma Budha
महात्मा गौतम बुद्ध को लोग भगवान बुद्ध कहकर पुकारते हैं। महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म ईसा से 623 वर्ष पूर्व हुआ था। शैशव काल में आपका नाम सिद्धार्थ था। आपके पिता शुद्धोधन शाक्य वंश के राजा थे। आपके जन्म के सात दिन बाद ही आपकी माता महामाया का देहांत हो गया था।
आपका लालन-पालन आपकी मौसी ने किया था। आपके जन्म के संबंध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। सुना जाता है कि आपके जन्म से पूर्व माता माया देवी ने यह स्वप्न देखा था कि एक अपूर्व ज्योति उनकी देह में प्रविष्ट हो रही है। महापुरुषों की लीलाएँ वैसे भी विचित्र होती हैं।
शैशवकाल से ही सिद्धार्थ एकांत प्रेमी थे। आपकी एकांतप्रिय प्रवृत्ति आपके पिता के लिए चिंता का विषय थी। सिद्धार्थ एकांत में बैठकर बस चिंतन किया करते थे। आपका विवाह अद्वितीय सुंदरी राजकुमारी यशोधरा से हुआ था। पिता शुद्धोधन और अन्य अनुभवी लोगों की सम्मति से राजकुमार सिद्धार्थ का विवाह करके उन्हें गृहस्थ जीवन के बंधन में बाँध दिया गया ताकि वह अपने एकांत से बाहर आ सकें।
परन्तु ऐसा नहीं हआ। शान-शौकत के चमक-दमक वाले राजशाही जीवन से तो वह पहले ही विरक्त थे, परंतु गृहस्थ आश्रम भी उन्हें अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सका। उन्हें तो केवल एकांत में साधना करना ही प्रिय था।
सिद्धार्थ का जिज्ञासु हृदय गृहस्थ आश्रम के वैभव में संतुष्ट न रह सका। अपने चारों ओर दुख, निराशा, रोग, शोक, संताप और जगत अनन्य कष्टों को देखकर वह विचलित हो उठे थे। चिन्मय शांति की खोज में एक दिन अर्धरात्रि को वह वन की ओर चल पडे। अपने पर राहल और पत्नी यशोधरा का मोह भी उन्हें रोक नहीं सका। एक ही पर में उन्होंने संसार के सभी सुखों को त्याग दिया और वैरागी हो गए। ऐसा वैराग्य भाव करोड़ों में से किसी एक के मन में पैदा होता है। कहने को तो सिर मुंडवाकर और गेहुँआ कपड़े पहनकर लोग शीघ्रता से संत अथवा वैरागी बन जाते हैं, परंतु वे अपने मन से सांसारिक सुखों का त्याग नहीं कर पाते और आजीवन माया-जाल में फँसे रहते हैं।
परंतु भगवान बुद्ध ने तो एक ही पल में सारा सुख और वैभव त्याग दिया था। अंत में उन्होंने वह मार्ग खोज ही लिया जो मनुष्य के मन को शांति की ओर ले जाता है। 49 दिनों तक ध्यानस्थ रहने के बाद इन्हें बुधत्व की प्राप्ति हुई। तब से ये गौतम बुद्ध कहलाने लगे। 80 वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध ने अपने शरीर का परित्याग कर निर्वाण को प्राप्त किया। निर्वाण की प्राप्ति के लिए उन्होंने संसार को सद्धर्म का उपदेश दिया। वह धर्म विश्व में बौद्ध धर्म के नाम से प्रचलित हुआ।
आज भी बौद्ध विचारों में शांतिदायितनी स्तवन उठता है और दिशाओं को गुंजायमान करता है:
बुद्धं शरणं गच्छामि
संघं शरणं गच्छामि
धम्मं शरणं गच्छामि।