दो हंस तथा कछुआ
Do Hans aur Kachuva
एक स्थान परएक तालाब में दो हंस तथा एक कछुआ रहते थे। इन तीनों में गहरी दोस्ती थी। कछुआ अत्यन्त बातूनी था। हंसों ने उसेकई बार समझाया कि जो व्यर्थ की बाते करते हैं वे बाद में पछताते हैं। पर कछुआ अपनी आदत से मजबूर था। एक बार वर्षा कम हुई जिसके कारण तालाब का पानी सूख गया। हंसों ने उड़कर किसी दूसरे तालाब पर जाने की सोची। पर वे अपने मित्र को अकेला छोड़ कर नहीं जाना चाहते थे। अचानक उन्हें एक उपाय सूझा। वे लकड़ी का एक मजबूत टुकड़ा उठा कर लाए और कछुए से बोले, “हम दोनों इस लकड़ी को अपनीअपनी चोंच में दबा लेंगे और तुम इसे बीच में मजबूती से अपने मुँह से पकड़लो इस प्रकार हम जहाँ भी जाएंगे, तुम भी हमारे साथ पहुंच जाओगे। पर ध्यान रखना यदि तुमने एक बार भी अपना मुँह खोला, तो तुम गिर कर मर जाओगे।
तीनो मित्र अपनी योजना के अनुसार उड़े। उड़ते-उड़ते एक गाँव के उपर से गुजरे। नीचे कुछ बच्चे खेल रहे थे। जब उन्होंने दो हंसों को एक कछुए को ले जाते देखा, तो वे चिल्लाए। देखो! देखो! हंस एक कछुए क ले जा रहे हैं। थोड़ी देर में वह नीचे गिरेगा तथा हम इसे पकड़ लेंगे। कछुआ उनकी बात सुनकर चुप न रह सका। जैसे ही उसने बच्चों को डांटने के किए अपना मुंह खोला। वह नीचे गिर गया और मर गया।
शिक्षा- व्यक्ति को कम तथा सोच समझ कर बोलना चाहिए।