प्यासा कौआ
Pyasa Kova
गर्मी का मौसम था। जून के महीने की तपती दोपहर थी। सभी जीव गर्मी से व्याकुल थे। ऐसे समय में एक प्यासा कौआ प्यास से छटपटा रहा था। वह पानी की खोज में इधर-उधर भटक रहा था। परन्तु उसे पानी कहीं भी दिखाई न दिया। पानी की तलाश में उड़ता-उड़ता वह एक पेड के नीचे बैठ गया। वहाँ उसे एक घड़ा दिखाई दिया। उसने उसमें झांक कर देखा तो बहुत प्रसन्न हुआ। उस घडे में पानी था। कोए ने अपनी चोंच घड़े में डाली, पर उसकी चोंच पानी तक न पहुंची क्योंकि पानी बहुत नीचे था। कौए ने फिर भी आशा न छोड़ी। उसे एक उपाय सूझा। वहाँ आस-पास बहुत से कंकर पड़े थे। उसने एक-एक कंकर घड़े में डालना शुरू कर दिया। थोड़ी देर में पानी उपर आ गया। कौआ प्रसन्न हुआ तथा पानी पीकर अपनी प्यास बुझा ली।
शिक्षा- परिश्रम के बिना फल नहीं मिलता।