शहीद उधम सिंह
Shaheed Udham Singh
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वरस मेले
वतन पे मिटने वालों का वस यही बाकी निशां होगा।
भूमिका– शहीद उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर, 1899 को जिला संगरूर के सुनाम में सरदार टहल सिंह के यहाँ एक साधारण परिवार में हुआ। बचपन से ही इनकी माता-पिता बड़ा भाई साधु सिंह परलोक सिधार गए। अब उधम सिंह घर में अकेला था।। इसके चाचा चंचल सिंह ने उसे मैंटल सिक्ख यतीमखाना. अमतसर में भर्ती करा दिया। वहाँ उन्होंने बढ़ई का काम सीखा। इसी दौरान उनका सम्पर्क भगत सिंह और कुछ क्रान्तिकारियों से हुआ। शंका की दृष्टि से पुलिस ने इन्हें गिरफतार कर लिया। वे चार वर्ष मुलतान और रावलपिंडी की जेलों ब्रिटिश हकूमत की यातनाएं सहन करते रहे। रिहा होने के बाद अमृतसर आकर इन्होंने लकड़ी की दुकान शुरू कर दी और अपना नाम बदल कर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया। ।
रौलेट एक्ट का विरोध- भारत पर दमन चक्र चलाने के लिए एक एक्ट पास किया जिसका नाम रौलेट एक्ट था। भारतीयों ने इसका डटकर विरोध किया। इस एक्ट की वापिसी के लिए 6 अप्रैल, 1919 को एक विशेष दिवस के रूप में मनाया गया। 9अप्रैल को सभी समुदायों के लोगों ने रामनवमी का त्यौहार राष्ट्रीय एकता पर्व के रूप में मनाया गया। ऐसा देखकर ब्रिटिश सरकार बौखला गई। 10 अप्रैल को महात्मा गाँधी, डॉ० सतपाल और डॉ० किचलू को गिरफतार कर लिया गया। बाद में लोगों ने एक शान्तिप्रिय जलूस निकाला। जब जलूस भण्डारी पुल के पास पहुँचा तो सेना ने अन्धाधुंध गोली चलानी शुरू कर दी जिससे 20 लोग मारे गए और कई घायल हो गए। इस से जनता भड़क उठी और बगावत पर उतर आई। सरकारी सम्पति की लूट-पाट, तोड़-फोड़ और आगजीनी जैसी घटनाएं हुई। रास्ते में जो भी अग्रेज़ आया उसे मार दिया गया। अंग्रेज़ सरकार घबरा गई। शहर को सेना के हवाले । कर दिया गया। दफा 144 लगा दी गई। रात का कयूं लगा दिया गया। 2 दिन तक सारा शहर बन्द रहा।।
जलियांवाला बाग की घटना- विदेशी शासकों की दमनकारी नीति का विरोध करने के लिए 19 अप्रैल, 1010 को जलियांवाला बाग में एक सभाका आयोजन किया गया। हजारों भारतीय वहाँ इकट्ठे थे। ब्रिटिश सरकार बौखला गई। तभी जनरल डॉयर ने सेना के साथ जलियांवाला बाग में एक तंग गली से प्रवेश करके अचानक निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाने का हुकम दिया। लोग घबराकर इधर-उधर भागने लगे। कुछ ने कुएं में छलांग लगा दी। दस मिन्ट तक रइफलों से 1654 गोलियां चलाई गई। भीषण गोलाबारी से 500 लोग मारे गए और हजारों घायल हो गए। उस समय उधम सिंह बाग में घायलों को पानी पिला रहा था। उधम सिंह ने खून से रंगी मिट्टी को माथे से लगाकर इस कत्लेआम का बदला लेने की कसम खाई।
जनरल डॉयर रिटायर होने के बाद वापिस लन्दन चला गया। उधम सिंह छिपता-छिपाता कई देशों से होता हुआ लन्दन जा पहुंचा और इण्डिया हाऊस में रहने लगा। 13 मार्च 1940 को लन्दन के सेक्टसन हाल में जनरल डॉयर को गोली से उड़ा दिया गया। गोलियों की आवाज सुनकर सभी भागने लगे। उधम सिंह भागा नहीं। स्वयं ब्रिटिश सार्जेन्ट के सामने पेश हो गया। अग्रेज सरकार ने उस पर मुकदमा चलाया और उसे फांसी की सजा दी। महान सपूत ने बड़े गर्व से कहा मुझे मौत की सजा की परवाह नहीं क्योंकि मैंने भारत माता के सम्मान का बदला ले लिया है। यह वीर क्रान्तिकारी 31 जुलाई, 1940 को लन्दन में हँसते-हँसते फांसी पर झूल गया। देश पर मिटने वाले अमर शहीद ऊधम सिंह को शत्-शत् प्रणाम।