सिनेमा के लाभ हानियां
Cinema ke Labh – Haniya
निबंध नंबर:- 01
भूमिका- जीवन संघर्ष में जब मनुष्य थक जाता है तब पुनः स्फूर्ति प्राप्त करने के लिए मनोरंजन की आवश्यकता होती है। मनुष्य को अपनी शारीरिक एवं मानसिक थकान मिटाने के लिए मनोरंजन की आवश्यकता होती है। मनोरंजन के अनेक साधनों में चल चित्र का विशेष स्थान है।
चलचित्र का आविष्कार एवं इहितास– चलचित्र का आविष्कार, सर्व प्रथम अमेरिका में हुआ। वाशिंगटन के निवास टामस ने 1859 में एक चलचित्र-यन्त्र तैयार किया। वर्तमान रूप में सिनेमा दिखाने की मशीन सन् 1900 में बनकर तैयार हुई और इस प्रकार इसका प्रचार पहले पश्चिमी देश इंग्लैंड, फ्रांस आदि में हुआ। भारत में सन् 1898 में पहली लघु फिल्म बनी थी। हमारे देश में सिनेमा के संस्थापक दादा साहिब फालके माने जाते हैं तथा यहाँ पहली फिल्म सन् 1913 में बनी। हरिश्चन्द्र तारामती पहली फिल्म थी। आरम्भ में केवल ‘ब्लैक एण्ड वाइट’ फिल्में बनती। थी पर आज रंगीन फिल्में ही तैयार होती हैं।
चलचित्र लाभ-हानि- चलचित्रों से वास्तव में समाज को एक ओर लाभ होता है तो दूसरी और इससे वाली हानियों की उपेक्षा भी नहीं की जा सकती। चलचित्रों से विशेष रूप में मनोरंजन होता है। साधारण व्यक्ति जी की भाग दौड में थक कर कभी-कभी मनोरंजन करने के लिए चल-चित्र देखता है। कुछ घण्टो तक वह कम व्यय करके मनोरंजन कर लेता है। इस मनोरंजन में उसे संगीत, कहानी, समाज की स्थिति आदि का चित्रण मिलता है। सामाजिक दष्टि से चलचित्रों के द्वारा समाज में व्याप्त रूढियों और अन्धकारों तथा बराईयों से लोगों को परिचित कराया जाता है जैसे दहेज प्रथा, बाल विवाह, छुआछूत वर्तमान युग में राजनीति में व्याप्त, समाज और सरकारी मशीनरी में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अधिकांश फिल्मोंका निर्माण किया जाता है। बच्चों, युवकों और विद्यार्थियों का ज्ञान बढाने के लिए सिनेमा एक उपयोगी कला है। चलचित्र द्वारा युवकों में वीरता, देश प्रेम, समाज सुधार तथा धर्म की भावना पैदा की जा सकती है। सिनेमा एक उपयोगी आविष्कार है। सिनेमा द्वारा भूगोल, इतिहास आदि विषयों की शिक्षा सरलता से दी जा सकती है। शिक्षा के क्षेत्र में आधुनिक युग में चलचित्रो का विशेष महत्त्व बढ गया है। बालकों को कृषि आदि का ज्ञान चलचित्रों के माध्यम से समझाया जा सकता है। चलचित्रों के माध्यम से राष्ट्रीय भावनात्मक एकता को भी बढ़ाया जा सकता है। इससे हिन्दी भाग के प्रचार और प्रसार में सहायता मिलती है।
वर्तमान यग में विद्यार्थियों और युवा वर्ग के लिए तो सिनेमा वरदान की अपेक्षा अभिशाप सिद्ध हो रहा है। सिनेमा के आर्कषण से, धन प्राप्ति, यश प्राप्ति की कामना में युवक और युवतियाँ घर से भागकर अपना जीवन सड़कों में डाल देते हैं। ये गुमराह होकर असामाजिक लोगों के हाथों में पड़ जाते हैं। नग्न और अश्लील दृष्यों के द्वारा सुकुमार बालक-बालिकाओं पर दूषित प्रभाव पड़ता है। कई लोग धोखा देने, डाका डालने, बैंक लूटने, स्त्रियों के अपहरण, बलात्कार, नैतिक पतन, भ्रष्टाचार, शराब पीने आदि की बुराई चल-चित्रों से ही ग्रहण करते हैं। कुछ लोग सिनेमा के नशे में प्रतिदिन सिनेमा देखकर धन और समय का दुरुपयोग करते हैं।
उपसंहार- यह ठीक है कि कुछ फिल्में अच्छी होती भी सफल नहीं होती हैं। लेकिन चरित्र प्रधान फिल्में समाज को नई दिशा देती हैं। भारत सरकार को चाहिए कि अच्छी फिल्में बनाने वालों को पुरस्कार दें और आर्थिक सहायता भी दें।
निबंध नंबर:- 02
सिनेमा
Cinema
सिनेमा एक वैज्ञानिक देन है। जिस प्रकार विज्ञान ने हमारे लिए अनेक साधन उपलब्ध किए हैं, उसी प्रकार मनोरंजन के क्षेत्र में विज्ञान ने अप्रतिम उन्नति की है। थक-हार के शाम को आदमी जब घर आता है, तो उसे अपनी थकान मिटाने के लिए मनोरंजन की आवश्यकता होती है। यह मनोरंजन थोड़ी-सी धनराशि खर्च करके प्राप्त हो जाता है। अतः आज सिनेमा जगत मानव जीवन के मनोरंजन का प्रमुख साधन बन गया है।
चलचित्रों का आविष्कार बीसवीं शताब्दी की देन है। आज से पाँच-छह दशक पूर्व चित्रों का मूक प्रदर्शन होता था। परंतु आज इसका स्वरूप अत्यंत परिष्कृत हो गया है। इसी कारण आज संपूर्ण समाज सिनेमा से प्रभावित है। समाज के सभी लोग इसका आनंद लेने के इच्छुक रहते हैं।
यह बात सर्वविदित है कि सिनेमा मनोरंजन का सस्ता एवं प्रिय साधन है। यद्यपि आज मनोरंजन के अनेक साधन हैं, फिर भी सिनेमा का अपना विशिष्ट स्थान है, क्योंकि सिनेमा मानव जीवन का मनोरंजन होने के साथ समाज-सुधारक का रूप भी है। इसमें समाज-सुधारक दृश्यों से मानव-मन में समाज सुधार की भावना आती है। इसके अतिरिक्त महंगाई और बेकारी की समस्या को भी फिल्म के माध्यम से दिखाकर समाज सुधार में सहयोग प्रदान किया जाता है। अतः सिनेमा का समाज सुधार में महत्वपूर्ण योगदान है।
सिनेमाघरों से टैक्स के रूप में सरकार को प्रतिवर्ष अत्यधिक मात्रा में धनराशि मिलती है। अत: यह राजकीय आय का एक प्रमुख साधन भी है। इस प्रकार सिनेमा का देश के विकास में भी महत्वपूर्ण यो है। निस्संदेह सिनेमा शिक्षित तथा अशिक्षित दोनों ही वर्गों के लिए शिक का एक स्रोत है।
प्रायः आजकल सिनेमा में ऐसे दूषित समाज के दृश्यों का पटक किया जा रहा है जिससे युवा वर्ग का पतन हो रहा है। आजकल अधिकारी चित्र प्रेम, अश्लील एवं मर्यादाहीन चित्रित किए जा रहे हैं। इससे चारिजिन पतन हो रहा है जिसके परिणामस्वरूप बुराईयाँ भी पनप रही हैं।
इस प्रकार सिनेमा जहाँ मानव जीवन के लिए लाभदायक है, वहीं हानिकारक भी है। आज इसमें सुधार की आवश्यकता है। फिल्मी भावनाएँ शिक्षाप्रद और उच्च कोटि की होनी चाहिए जिससे नागरिकों का सही पथ-प्रदर्शन हो सके तभी सिनेमा मानव जीवन के लिए सहायक सिद्ध हो सकता है।