Hindi Essay on “Parishram ka Mahatva”, “परिश्रम का महत्त्व”, for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students, Board Examinations.

परिश्रम का महत्त्व

Parishram ka Mahatva

2 Hindi Essay on “Parishram ka Mahatva”

Essay No. 01

मानव जीवन में परिश्रम का बहुत महत्त्व है। परिश्रम ही सफलता की कुंजी है। जीवन में अगर हमें सफलता प्राप्त करनी है तो उसके लिए कठोर परिश्रम का मार्ग अपनाना होगा।

कठोर परिश्रम अर्थात् जी जान से किसी कार्य को पूरा करने के लिए मेहनत करना। एक दोहे के अनुसार-

करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।

रसिर आवत जात् ते सिल पर परत निशान।।

 

अर्थात् परिश्रम करने से तो रस्सी भी पत्थर पर निशान डाल सकती है। फिर मनुष्य की तो बात ही कुछ निराली है वह अगर मेहनत करे तो क्या कुछ नहीं कर सकता। परिश्रम तो असंभव को भी संभव बना देता है।

हर व्यक्ति के जीवन का कोई न कोई लक्ष्य होता है। उसे अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए पूरा परिश्रम करना चाहिए। परिश्रमी व्यक्ति ही अपने लिए, परिवार के लिए और देश के लिए कुछ भी कर सकता है।

एक विद्यार्थी के जीवन में तो इसका बहुत महत्त्व है। एक विद्यार्थी जब तक अपनी पढ़ाई पूरी मेहनत से नहीं करता तब तक वह कक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो सकता। परीक्षा में वही विद्यार्थी असफल होते हैं जो आलसी व कमजोर होते हैं। मेहनती बच्चे अपनी मेहनत से अपना भाग्य खुद बनाते हैं।

हमें हमेशा कोशिश करते रहनी चाहिए। अगर कोई मनुष्य किसी कार्य में असफल हो जाता है तो उसे हार नहीं माननी चाहिए बल्कि सफलता प्राप्ति के लिए फिर से परिश्रम करना चाहिए। तब वह एक दिन जरूर सफल होगा।

परिश्रम के द्वारा सभी कार्य सफल हो जाते हैं। अतः सभी को परिश्रमी होना चाहिए।

 

Essay No. 02

परिश्रम का महत्त्व

Importance of Labour

 

रूपरेखा

परिश्रम से सफलता मिलती है, इससे हर काम बनता है, शेर भी शिकार करके खाता है, श्रम आलस्य और उदासी दूर करता है, श्रम से लाभ, आजादी के लिए किए गए श्रम का उदाहरण, श्रम से धन और यश मिलता है, महापुरुषों का उदाहरण

परिश्रम सफलता प्राप्त करने का मूलमंत्र है । श्रम करके हम अपने जीवन की अभिलाषा को पूरा कर सकते हैं । परिश्रम से हम उन सुखों को भी प्राप्त कर सकते हैं जो हमारे भाग्य में नहीं है। यह संसार कर्मक्षेत्र है। यहाँ कर्म ही प्रधान है। बिना श्रम किए कुत्ते-बिल्लियों को भी भोजन प्राप्त नहीं होता है । संस्कृत के एक श्लोक में कहा गया है :

उद्यमेन ही सिध्यन्ति कार्याणि मनोरथैः

हि सप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।

अर्थात् उद्ययम (श्रम) से ही कार्य की सिद्धि होती है । केवल इच्छा करने से सफलता नहीं मिल सकती । सोये हुए सिंह के मुख में हिरण अपने-आप नहीं चला आता । उसे शिकार के लिए थोड़ी मेहनत करनी ही पड़ती है । हिरण की आशा में घात लगाकर बैठना पड़ता है । चतुराई दिखाकर उस पर अचानक हमला करना पड़ता है । इसी तरह प्रत्येक कार्य उचित श्रम की माँग करता है । बुद्धिमानीपूर्वक किए गए लगातार श्रम से कार्य पूरा हो जाता है।

श्रम हमारे जीवन को गतिमान रखता है। यदि हम श्रम को नकारते हैं तो हमारे जीवन की गति रुक जाती है। हमारा जीवन आलस्य और उदासी से घिर जाता है । मन में निराशा उत्पन्न हो जाती है । हम भाग्यवादी बन जाते हैं । तब कोई भी कार्य मन से नहीं किया जाता । तुलसीदास जी कहते हैं: दैवदैव आलसी पुकारा। आलसी व्यक्ति खुद कुछ नहीं करना चाहते और हर समय ईश्वर से सहायता की याचना करते हैं । लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि ईश्वर उसी की सहायता करते हैं जो मेहनती होते हैं।

परिश्रम करने से मनुष्य को बहुत लाभ होता है । उसे भीतरी शांति प्राप्त होती है। उसका हृदय निर्मल हो जाता है । उसके संकल्प दढ होने लगते हैं। उसके अंदर का विश्वास मजबूत बनता है । जीवन में उन्नति के लिए लोग बुरे से बुरा काम करते हैं । परिश्रम से बचने के लिए शार्ट कट रास्ता अपनाते है । यदि वह परिश्रम को अपने हाथ में ले ले तो धीरे-धीरे उन्नति करते हए विकास के शिखर पर चढ़ता जाता है । संसार में लोग उसका नाम आदर के साथ लेते हैं।

भारत के लोगों की लंबी गुलामी का कारण यही था कि यहाँ के निवासियों ने परिश्रम को भुला दिया था । लोग आलसी और निष्क्रिय हो गए थे। आज भी हम आलसी बने रहे तो फिर से अपनी आजादी खो देंगे । पर यदि हम परिश्रम करते रहे तो एक दिन भारत विकसित देश बन जाएगा।

परिश्रम से मनुष्य को धन और यश दोनों ही मिलता है । धन कमाने का सबसे आसान तरीका परिश्रम करना है । परिश्रम के बल पर कितने ही गरीब लोग अमीर बन गए हैं । जहाँ तक यश की बात है तो वह व्यक्ति को जीवित रहते हुए भी मिलता है और मृत्यु के बाद भी । अपनी मृत्यु के बाद . वह लोगों के लिए एक आदर्श छोड जाता है । प्रेमचन्द, महात्मा गाँधी, सुभाषचन्द्र बोस, जवाहर लाल नेहरू आदि महापुरुषों का संसार में बहुत सम्मान किया जाता है । इन लोगों ने अपने जीवन में बहुत श्रम किया था । इनके संघर्षों की कथा आज भी पढ़ी और सुनी जाती है । परिश्रम का महत्त्व बताते हुए कवि हरिऔध जी ने लिखा है:

देखकर बाधा विविध बहुविन घबराते नहीं,

रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं

इसलिए हमें भाग्य भरोसे न रहकर कठिनाइयों का डटकर मुकाबला करना चाहिए । परिश्रम से बाधाएँ दूर हो जाती हैं।

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