महाशिवरात्रि
Maha Shivratri
महाशिवरात्रि सबके लिए परम पुनीत एवं मंगलमय दिवस है। यह चंद्रमा के कृष्ण-पक्ष की चतुर्दशी को होती है। माघ माह के कृष्ण-पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहा जाता है। अन्य रातें केवल रात्रि हैं। किंतु यह रात्रि शिव की रात्रि मानी जाती है तथा अंतर को आलोकित करने वाली है। इसलिए इस दिन सब शिव की पूजा करते हैं। शिवरात्रि वह पुण्य दिवस है। जिस दिन भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकलने वाले भयंकर विष का ग्रहण कर समस्त मानवमात्र की रक्षा की थी। अतः शिव के प्रति निष्ठा और भक्ति अर्पित करने का यह विशेष दिवस है। शिवरात्रि की एक अन्य महत्ता है। अविनाशीपूर्ण-पुरुष अथवा परम-पुरुष शिव ने प्रकृति को अपनी ओर आकर्षित करने की इच्छा से तांडव नृत्य प्रारंभ किया। तांडव नृत्य इतना अधिक विराट एवं प्रचंड था। कि भगवान शिव के विग्रह से तीव्र गति के कारण अनुताप से अग्नि प्रस्फुटित हो रही थी।
भगवान शिव को शांत करने हेतु पार्वती जी ने उनके शीश पर गंगा शोभित की। उनके केश-कुंडल में चंद्रकला विराजित की, उनकी देह पर शीतल चंदनसार का लेपन किया। उनके पांव और हस्तगंधों में शांत लपेटे और अंत में हिमालय (नित्य हिमाच्छादित पर्वत) की पुत्री होने के नाते वे उनके उत्संग में विराज उनका अर्धाग ही बन गयींइस पर शिव उठे एवं पुरुष तथा प्रकृति ने संयुक्त नृत्य किया। जिससे समस्त सृष्टि एवं देवताओं को अतीव प्रसन्नता हुईपुराणों के अनुसार यह घटना महाशिवरात्रि को ही घटी थी।
इस घटना का माहात्म्य इस तथ्य में है कि इसमें भगवान को प्रसन्न करने तथा उनकी कृपा प्राप्त करने के रहस्य का निदर्शन है। इस दिन मंदिरों में शिवरात्रि का पुनीत पर्व मनाया जाता है। मंदिरों में शिव की लिंग के रूप में अर्चना की जाती है। शिवलिंग वह सार्वभौमिक प्रतीक है। जिसमें सबका लय होता है। जिससे सबकी उत्पत्ति है। इस दिन कच्चे दूध की लस्सी, बिल्व-पत्र, शहद, घी, दही, पुष्प, बैर आदि फल; भांग- धतूरा तथा पान आदि वस्तुओं द्वारा शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। शिवरात्रि को जागरण- अनुष्ठान मनुष्य के शाश्वत जागरण के पालन का प्रतीक है। शिवरात्रि को भक्तजन व्रत भी रखते हैं। जो कि इंद्रियों को वांछित पदार्थों से वंचित रखने का साधन है।