रक्षा-बंधन
Raksha Bandhan
निबंध नंबर : 01
रक्षा-बंधन का त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है। इसका एक गहन अर्थ है।
येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महावलः।
तेन त्वामपि बंधनामि, रक्षे मा चल मा चल
अर्थात् रक्षा के जिन सूत्रों से शक्तिशाली बलि राजा को बांधा था। उन्हीं धागों में मैं तुम्हें बांधती हूँहे रक्षा के सूत्रो, तुम भी विचलित न होनारक्षा के सूत्र सचमुच बड़े बलशाली होते हैं। जो बांधने वाले और बंधन वाले को प्रेम के पवित्र बंधन में बांध देते हैं। बहन भाई की कलाई पर इस भावना से प्रेरित होकर राखी बांधती है कि उसकी यह राखी अक्षय-कवच बनकर जीवन के घात-प्रत्याघातों से उसके भाई की रक्षा करे और भाई बहन को वचन देता है कि वह शरीर में एक बूंद रक्त रहने तक अपनी भगिनी के मान-सम्मान की रक्षा करेगा।
भाई-बहन के पवित्र त्याग एवं प्रेम का यह त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। राखी, सलूनों और श्रावणी इसी रक्षा-बंधन त्योहार के अन्य नाम हैं। इस राष्ट्रव्यापी पारिवारिक पर्व को मनाने की परंपरा प्राचीन काल से अब तक अविच्छिन्न रूप से चली आ रही है। रक्षा-बंधन की परंपरा का सूत्रपात कब और कैसे हुआ।इसके विषय में ‘भविष्य पुराण’ में एक कथा। प्रसिद्ध है कि एक बार देव-दानव का युद्ध हुआ। देवता पराजित होने लगे और दानवों का संघर्ष तीव्र से तीव्रतर होता गया। अंत में सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गयेभगवान विष्णु ने सारा हाल सुनकर देवताओं से कहा, “आप चिंतित न हों। आप सब मिलकर इन्द्राणी के पास जायें और कहें कि वह आपकी रक्षा के लिए व्रत करें। व्रत जब समाप्त हो जाये, तब एक सूत्र इन्द्रदेव के दाहिने हाथ में बांध देंआप लोगों की विजय अवश्य होगी।”
इसके प्रभाव से इन्द्र को विजयश्री प्राप्त हुईतब सभी ने रक्षा के इन सूत्रों का महत्त्व निर्विवाद रूप से स्वीकार कर लिया और तभी से यह त्योहार मनाया जाता है।
कुछ ऐतिहासिक घटनाएं भी रक्षा-बंधन की इस प्राचीन परंपरा पर प्रकाश डालती हैं। मुस्लिम शासक हिंदू ललनाओं का बलपूर्वक अपहरण कर लेते थेइस स्थिति से बचने के लिए राजपूत बालाएं बलवान राजाओं से भ्रातृ-संबंध स्थापित कर अपनी मान रक्षा करती थीं। मेवाड़ की वीरांगना कर्णवती ने अपनी सहायता के लिए मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजी थी। हुमायूं ने मुस्लिम होकर भी हिंदू बहन की राखी का जो सम्मान किया। उससे न केवल भारतीय इतिहास में एक गौरवपूर्ण प्रथा अंकित हुई, अपितु यह भी सिद्ध हुआ कि प्रेम का पवित्र बंधन धर्म और माता-पिता के पार्थिव बंधनों से मुक्त होता है।
विश्वविजय के अभिलाषी सिकंदर महान की जीवन-रक्षा के लिए एक यूनानी युवती ने राजा पुरु को राखी भेजकर सिकंदर के प्राणों की रक्षा की थी।
निबंध नंबर : 02
रक्षाबंधन
Raksha Bandhan
“राखी के पावन धागों में, छिपा बहिन का पावन प्यार।
भगिनी की रक्षा का बंधन है, है रक्षाबंधन त्यौहार।”
भूमिका- मानव जाति के इतिहास में आरम्भ से ही त्यौहार, पर्व तथा अनेक प्रकार के उत्सवों का वर्णन मिलता है। प्रत्येक जाति के अपने-अपने उत्सव और त्यौहार होते हैं, उनके मूल में भिन्न-भिन्न कारण होते हैं, उन्हें मनाने के ढंग भी पृथक-पृथक हो सकते हैं। हमारा देश त्यौहारों और पर्यों का देश है। यहाँ वर्ष में अनेक त्यौहार, पर्व जयन्तियां मनाई जाती हैं। इन त्यौहारों में कुछ राष्ट्रीय त्यौहार है। रक्षा बन्धन एक राष्ट्रीय स्तर का त्यौहार है।
रक्षाबन्धन की पृष्ठभूमि और महत्त्व- ‘राखी’ शब्द संस्कृत के ‘रक्षा’ शब्द से बना हुआ है। बन्धन का तात्पर्य बांधने से है। इस प्रकार रक्षा बन्धन वह सूत्र है जिसका सम्बन्ध रक्षा के लिए तैयार रहना है। यह त्यौहार भाई को बहिन के प्रति उसके कर्त्तव्य की याद दिलाता है। यह त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है इसीलिए इसे श्रावणी भी कहा जाता है।
पुराणों की कथा के अनुसार एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच भीषण युद्ध हुआ जिसमें देवता, हारने लगे। इन्द्र की पत्नी राची ने देवताओं को राखी बाँधी । देवताओं ने राक्षसों को युद्ध में हराया। उसी दिन से यह माना गया कि इन्द्र की विजय उस रक्षा सूत्र के कारण हुई है और तबसे ही यह रक्षा सूत्र या रक्षा बन्धन बांधने की प्रथा चल पड़ी।
इसी प्रकार जब सिकन्दर और पुरू का युद्ध आरम्भ हुआ तो सिकन्दर की प्रेमिका ने पुरू के हाथ में राखी बांधकर उससे यह वचन लिया था कि उसके हाथों सिकन्दर की मृत्यु नहीं होगी। इसी प्रकार जब बहादुशाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया था तो चितौड़ की महारानी कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजी थी तथा हुमायूँ ने महारानी कर्मवती की रक्षा की थी।
वर्तमान स्वरूप- वर्तमान युग में राखी का त्यौहार अब मुख्य रूप से भाई-बहिन से ही जुड़ गया है। इस दिन स्त्रियां विशेष रूप से अपने घरों की सफाई आदि करती हैं। पूजा करती हैं और घर में अनेक प्रकार को स्वादिष्ट व्यंजन पकाती है। इसके वाद भाई उसके पास आता है। बहिन अपनी पूजा की थाली में मिठाई तथा राखी रखकर लाती है और भाई के हाथ में राखी बांधती है। उसे मिटाई आदि खिलाती है। भाई बहिन की रक्षा का वचन देता है तथा उपहार स्वरूप जो कुछ भी बन पाता है, वह देता है। वर्तमान युग में कई प्रदेशों में ब्राह्मण अपने यजमान को राखी बांधता है और उससे दक्षिणा आदि प्राप्त करता है। रक्षा बन्धन का त्यौहार भाई बहिन के पवित्र स्नेह का प्रतीक है। इस त्यौहार का मूल उद्देश्य तो बहिनों की रक्षा करना या देश की शत्रुओं से रक्षा करना है।
उपसंहार- रक्षा बंधन हमारा राष्ट्रीय त्यौहार है तथा भाई-बहिन का त्यौहार है। यह बड़ा पवित्र त्यौहार है। अत: हमें इसे धन से नहीं तौलना चाहिए। अपितु इसकी मूल भावना को अपनाना चाहिए। राखी की कीमत उसके धागों में नहीं बल्कि इन धागों में छिपे बहिन के प्यार में है। रक्षा बन्धन के दिन भाईयों की वीर तथा उत्साही बनने का व्रत भी लेना चाहिए।