जिस धन को व्यय न करना पड़े, वह तो भार के समान है
Jis dhan ko vyay na karna pade vah to bhar ke saman hai
किसी गांव में एक कंजूस रहता था। वह बहुत चिंता में था। उसके पिता मरते समय, उसके लिए सोने से भरा बर्तन छोड़ गए थे। कंजूस अपने सोने को किसी सुरक्षित जगह पर रखना चाहता था। अंत में उसे एक तरकीब सूझ गई। उसने उस सारे सोने को पिघला कर बड़े टुकड़े में बदला और ऐसी जगह छिपाने की सोची, जहां उसके सिवा कोई दूसरा न जान सके।
वह एक रात जंगल में गया और एक अच्छी सी जगह देख कर वहां सोना गाड़ दिया। अब उसे तसल्ली हो गई थी कि उसके सोने का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता था। वह अक्सर वहां जाता रहता था।
कजुस के दोस्त को अपने मित्र के इस बर्ताव पर संदेह होने लगा। एकदिन, जब वह अपने सोने की जांच करने गया तो उसके दोस्त ने उसका पीछा किया। जब उसे यह पता चला कि वहां सोना छिपा हुआ था तो एक दिन मौका पाते ही उसने वहां से सोना निकाल लिया।
जब कंजूस अगली बार जंगल में गया तो उसने पाया कि कोई उसका सोना निकाल ले गया था। वह रोते-रोते गांव में वापिस लौटा। उसे बच्चों की तरह रोता देख, उसके दोस्त ने तसल्ली देनी चाही। “क्या हुआ दोस्त? तुम रो क्यों रहे हो?”
कंजूस ने अपने मित्र को जंगल में छिपाए गए सोने के बारे में बताया। अब वह सोना चोरी हो गया था और उसके हाथ से हमेशा के लिए निकल गया था। जब वह और जोर से रोने लगा तो उसके दोस्त ने कहा, “कम से कम कोई उसका प्रयोग तो कर रहा है। तुम्हारे पास तो पहले से ही बहुत कुछ है। तुम अपने उस खाली बर्तन में एक पत्थर डाल कर वहीं गाड़ दो।। इस तरह तुम्हें लगता रहेगा कि तुम्हारा सोना वहीं सुरक्षित पड़ा है।”
नैतिक शिक्षाः जिस धन को व्यय न करना पड़े, वह तो भार के समान है।