हर प्राणी अपने आप में अनूठा होता है
Har Prani apne aap me Anutha hota hai
एक गिलहरी पर्वत के समीप खेल रही थी। जिस तरह वह उछल-कट कर छलांग लगा रही थी। उसे देख कर ही पता चलता था कि वह कितनी खुश थी। वहीं पास में खड़े पर्वत ने भी गिलहरी को देखा और बोला ओह बेचारी! देखो किसी काम की नहीं है। फिर भी कैसी उछलती-कूदती फिर रही है। इसे खुश रहने का दिखावा करना पड़ता है।”
हालांकि गिलहरी इन बातों से अनजान अखरोट तोड़ कर खाने व शाखाओं पर खेलने में मग्न रही। गिलहरी की इस नकली खुशी को देख कर पर्वत गरजा, “नन्ही गिलहरी! मुझे तो समझ नहीं आता कि तुम्हें किस बात की इतनी खुशी है। तुम इतनी छोटी हो कि किसी की मदद तक नहीं कर सकतीं। जरा मेरी ओर देखो! मैं कितना बड़ा हूं, मैं बादलों को एक ओर रोक सकता हूं, जब भी चाहूं, उन्हें अपने से टकराने की इजाजत दे कर, वर्षा करवा सकता हूं।”
गिलहरी ने विनम्रता से उत्तर दिया “बेशक तुम बहुत बड़े हो और बड़े-बड़े काम कर सकते हो और मैं नहीं कर सकती। हालांकि ऐसे बहुत से काम हैं जो तुम नहीं कर सकते और मैं कर सकती हैं। यह जीवन ऐसा ही है।”
पर्वत को यह सुन कर गुस्सा आ गया और उसने चुनौती दी। “ऐसा लगता है कि तुम मुझसे ज्यादा जानती हो। नन्ही गिलहरी! जाओ, जा कर उन कामों की सूची बना कर लाओ, जो मैं नहीं कर सकता…..”गिलहरी मुस्कुरा कर बोली, “ श्रीमान पर्वत! मैं देखना चाहूंगी कि आप मेरी तरह अखरोट तोड़ सकते हैं या नहीं, पेड़ों की शाखाओं पर छलांगें लगा सकते हैं या नहीं या एक ही झटके में उनसे उतर सकते हैं या नहीं…जरा सोचें। आप तो इनमें से ऐसा कुछ नहीं कर सकते क्योंकि आप मेरी तरह छोटे नहीं हैं।”
पर्वत को कोई जवाब नहीं सूझा। वह अब जान गया था कि हमें कभीकिसी के आकार का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए।
नैतिक शिक्षाः किसी भी प्राणी का आकार इतना महत्व नहीं रखता। हर प्राणी अपने-आप में अनूठा होता है।