भेड़िया व शेर
Bhediya aur Sher
गर्मियों के दिन थे, एक भेड़िया जंगल में अपने शिकार की तलाश में भटक रहा था। अचानक ही उसे एक साफ मैदान में बहुत सी भेड़ें दिखीं। वे दुपहरी की धूप में घास चर रही थीं।
भेड़िया जानता था कि उसे खाने का प्रबंध करने के लिए इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता था। वह जल्दी से एक मोटी झाड़ी के पीछे छिप गया। उसे पूरी उम्मीद थी कि कुछ ही देर में अपने झुंड से बिछुड़ कर कोई भेड़ उस ओर आएगी और वह उसे अपना भोजन बना लेगा।
तभी एक छोटा सा मेमना अपने झुंड से अलग हुआ और चरते-चरते वहीं आ गया, जहां भेड़िया ताक लगाए बैठा था। ज्यों ही भेड़िए को बेचारा मेमना दिखाई दिया। वह उस पर झपटा और उसका काम तमाम कर दिया। उसने उसे झट से अपने मुंह में दबाया और खाने के लिए किसी शांत एकांत स्थान की तलाश में चल दिया।
पर उसे ऐसी कोई जगह मिल ही नहीं रही थी। अभी वह थोड़ी हीदूर गया था कि उसके सामने एक शेर आ गया। “आहा! तो तुमने क्या सोचा, मुझे पूछे बिना ही, सारा अकेले ही हडप जाओगे? अब तुम्हें सजा मिलेगी और सारा शिकार मैं ही खा जाऊंगा।”
यह कह कर शेर ने उसके मुंह से मेमना छीन लिया और उसकी चमड़ी उधेड़ने लगा।
भेड़िया डर के मारे हौले से बोला, “यह तो गलत बात है आपने सरे बाजार मुझे लूट लिया।” शेर यह सुन कर गरजा, “तुम तो ऐसे बोल रहे हो मानो तुम्हें ये मेमना ईश्वर की ओर से उपहार में मिला हो! तुमने इस मेमने को झुंड में से चुराया है, मैंने इसे तुमसे चुरा लिया।”
भेडिया वहां से दुम दबा कर निकल लिया। अब उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि पलट कर शेर को जवाब दे पाता।
नैतिक शिक्षाः पाप तो पाप ही होता है और कभी न कभी इसकी कीमत चुकानी पड़ती है।