Hindi Essay on “Makar Sankranti”, “मकर-संक्रान्ति”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

मकर-संक्रान्ति

Makar Sankranti

निबंध नंबर – 01

मकर संक्रान्ति का पर्व माघ के महीने में आता है। इस महीने में शिशिर होती है अर्थात ठण्ड (सर्दी) का महीना होता है। अक्सर करके यह त्योहार जन की चौदह तारीख को ही पड़ता है।

यह तो हम जानते ही हैं कि पृथ्वी, सूर्य के चारों तरफ लगातार परिक्रमा करती रहती है। सूर्य के परिक्रमा-मार्ग में 27 प्रकार के नक्षत्र आते हैं तथा । नक्षत्रों की निम्नलिखित 12 राशियाँ हैं:-

(1) मेष राशि

(2) वृष राशि

(3) मिथुन राशि

(4) कर्क राशि

(5) सिंह राशि

(6) कन्या राशि

(7) तुला राशि

(8) वृश्चिक राशि

(9) धनु राशि

(10) मकर राशि

(ii) कुम्भ राशि तथा

(12) मीन राशि आदि।

हर महीने सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है।

सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना ‘संक्रान्ति’ कहलाता है। सूर्य वर्ष के बारह महीनों में बारह राशियों में चक्कर लगाता है। जिस दिन सूरज मेष इत्यादि राशियों से होकर गुजरता हुआ ‘मकर राशि में प्रवेश करता है उस दिन को ‘मकर-संक्रान्ति’ कहते हैं

सूर्य की दो प्रकार की गतियाँ हैं:-(क) उत्तरायण (ख) दक्षिणायन। साल के 6 महीने तक सूर्य उत्तरायण में रहता है और शेष 6 महीने वह दक्षिणायन में रहता है।

उत्तरायण के समय सूर्य उत्तर दिशा की ओर मुड़ता हुआ प्रतीत होता है। यलिए अत्तरायण की दिशा में पृथ्वी पर दिन बड़ा तथा रातें छोटी होती हैं।

दक्षिणायन काल में सूर्य की स्थिति इसके ठीक विपरीत होती है। अर्थात् दक्षिणायन के समय सूर्य दक्षिण दिशा की ओर मुड़ता हुआ प्रतीत होता है और इस कारण पृथ्वी पर दिन छोटे और रातें बड़ी होती हैं।

‘मकर-संक्रान्ति’ सूर्य के उत्तरायण होने को दर्शात है जबकि ‘कर्क संक्रान्ति’ सूर्य के दक्षिणायन होने को प्रकट करती है।

मकर-संक्रान्ति के दिन भारतवर्ष में गंगा-यमुना आदि पावन नदियों में स्नान किया जाता है। तीर्थराज प्रयाग तथा गंगासागर पर इस दिन काफी बड़ा मेला लगता है। मकर-संक्रान्ति के दिन धार्मिक प्रकृति के लोग तिल, गुड़, खिचड़ी आदि का दान दूसरों को देते हैं।

शीत ऋतु में तिल, गुड़ तथा मेवा आदि चीजें बलवर्द्धक प्रकार की दुआ करती है।

तिलं तूलं च तांबुलं, तप्दोकम्, तप्तभोजनम् ।

हेमन्ते न सेवन्ते, ते नरा मन्द भागिनः ।।

सधवा स्त्रियाँ इस दिन विशेष रूप से 14 वस्तुएँ मनसती हैं। इन वस्तुओं में फल और मेवा से लेकर कम्बल, स्वेटर, रजाई तक की वस्तुएँ होती हैं।

मकर-संक्रान्ति के दिन गरीब लोगों को दान करने से आदमी को बड़ा ही पुण्य मिलता है।

मकर-संक्रान्ति के दिन माता-पिता अपने कन्या की ससुराल मिठाई, गजक, रेवड़ी, तिल के लड्डू तथा स्वेटर आदि गर्म वस्त्र भेजते हैं। नई बहू के मायके से इस दिन मिठाई, कपड़े तथा बर्तन आदि बहुत सारे पदार्थ (ससुराल में) आते हैं।

मकर-संक्रान्ति से एक दिन पहले पंजाब में ‘लोहड़ी’ का त्योहार खूब धूमधाम तथा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

ईसाई धर्म के लोग 25 दिसम्बर को बड़ा दिन मानते हैं लेकिन भारतीय ज्योतिष शास्त्र की गणना के हिसाब से ‘मकर-संक्रान्ति’ का दिन ही सबसे बड़ा दिन है। इस दिन सूरज दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर प्रस्थान करता है फलस्वरूप दिन बड़ा तथा रात छोटी हो जाती है।

‘मकर-संक्रान्ति’ का त्योहार सूर्य देवता की पूजा करने का दिन होता है।

चूंकि सूर्य पृथ्वीवासियों को अग्नि एवं प्रकाश देता है इसलिए पृथ्वीवासियों के लिए सूर्य एक ‘देवता’ की तरह है।

वेदों में सूर्य को ‘पूषा’ भी कहा गया है। ‘पूषा’ का अर्थ है पुष्ट करने वाला। चूंकि सूरज अपने तेज से अन्न को पकाता है, खेतों की फसलों को पुष्ट करता है इसलिए वह ‘पूषा’ कहलाता है।

मकर-संक्रान्ति के दिन भारतीय किसान सूर्य की पूजा करके उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं।

आन्ध्रप्रदेश में तो बड़े दिन का यह त्योहार पौष महीने की पूर्णिमा से भी पहले शुरू हो जाता है। पर्व के अन्तिम दिन गृहणियाँ अन्य सुहागिन स्त्रियों के माथे पर कुंकुम लगाती हैं। चेहरों पर चन्दन का और पैरों में हल्दी का लेप करती हैं। एक दूसरे पर गुलाल और अबीर छिड़ककर तिल, गुड़ के लड्डू और बेर उनके आँचल में रखती हैं।

 

निबंध नंबर – 02

मकर संक्रान्ति

Makar Sankranti

 

गाँव में हलचल है, लोगों के मन में हर्ष-उल्लास है।  बच्चे खुशी से धमा-चौकड़ी मचा रहे हैं। तिल के लड्डू-पपड़ी खा रहे हैं।दूसरों को भी खिला रहे हैं। चौराहों पर गायों के लिए घास डलवाई जा रही है। सड़कों पर भिखारियों का तांता लगा हुआ है। पुराने वस्त्र, खिचड़ी ग्रादि देकर दानपुण्य किया जा रहा है।

आज मकर-संक्रान्ति है।  छट्टी का दिन है।  चौपाल पर ग्रामीण बैठे। हैं। लड़के पेड़ों की छांह में खेल रहे हैं। कुछ मैदान में पतगें उड़ा रहे हैं। लड़कियाँ घर के काम में हाथ बँटा रही हैं। गायें घास खा रही हैं। दुपहरी हो चली है।

तभी पंडित रामभजनजी रामनामी ओढ़ चौपाल की तरफ आ गये। लोगों ने उठकर ‘राम-राम सा’ कही ।

पण्डितजी ने मुस्कराते हुए अभिवादन स्वीकार किया और पालथी लगा कर सबके बीच में बैठ गए। फिर बोले “आज तो गाँव में खुशी ही खुशी है।

माधो काका ने अपने बेटे गिरधारी से कहा ‘बेटा ! जा, पण्डितजी के लिए जल ले आ।

पण्डितजी ने टोका–‘माधो काका ! आज तो गाढ़ी छाछ मंगाप्रो । आज तो मकर-संक्रान्ति है।  जी भरकर छाछ पियेंगे।

माधो काका मन ही मन मुस्कराये। अपनी खिचड दाढ़ी-मूछ पर हाथ फेरते हुए गिरधारी को छाछ लाने को कहा। गिरधारी तपाक से गया और लोटा भर कर मट्ठा ले आया और साथ में थाली में तिल के लड्डु भी।

सभी ने तिल के लड्डु खाए। पण्डितजी ने मट्ठा पीकर संतोष की साँस ली। इतने में गाँव के बहुत से लोग पण्डितजी के पास आकर बैठ गए। किसी ने राम-राम की तो किसी ने मत्था टेक ढोक-प्रणाम किया।

चौपाल भर गई ! तभी गोवर्धन ताऊ पूछ बैठे–‘पण्डितजी ! मकर संक्रान्ति क्यों मनाई जाती है? इसका महत्त्व क्या है?

पण्डित राम भजनजी ने कहा–‘‘शान्ति से सुनोगे तो सब बताऊँगा।”

सब लोग यथा स्थान बैठ गए। चारों ओर शान्ति छा गई। पण्डितजी ने एक बार अपने सिर पर हाथ फेरा। गांठ लगी चोटी को सम्हाला और कहने लगे।

आप लोग जानते ही हैं, कि भारतीय ज्योतिष के अनुसार राशियां बारह होती हैं-मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुभ और मीन।

संक्रान्ति का अर्थ है- सूर्य का एक स्थान (राशि) से दूसरे स्थान में प्रवेश। सूर्य जब धनु साशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। तब मकर संक्रान्ति होती है। इसीलिए इस पर्व को मकर-संक्रान्ति कहते हैं।

तभी गिरधारी ने उत्सुकता से पूछा-पण्डितजी ! मकर-संक्रान्ति के  बाद दिन बड़े क्यों होते जाते हैं?

पण्डितजी ने कहा–सो भी सुनो।

यों तो सूर्य हर महीने एक नयो राशि में प्रवेश करता है किन्तु सूर्य का कर्क राशि या मकर राशि में संक्रमण या गमन विशेष महत्त्व रखता है। जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो उसका झुकाव उत्तर दिशा की ओर होने लगता है। इसी को सूर्य का उत्तरायण होना कहते हैं। उत्तरायण में दिन बड़े होने लगते हैं। छह महीने तक दिन बड़े और राते छोटी होती हैं। ठीक छह महीने बाद सूर्य जब कर्क राशि में प्रवेश करता हैं। तो वह दक्षिणायण होने लगता है।  तब दिन छोटे और रातें बड़ी होने लगती हैं।

गोवर्धन ताऊ फिर बोले-‘‘महाराज ! अापने कथा। नहीं सुनाई ? मकर संक्रान्ति मनाने की विधि क्या है और यह कब से मनाई जाती है? यह सब बताइए।”

पण्डितजी हँसते हुए बोले, “जरा ठहरो तो माधो काका ! तनिक सांस तो लेने दो।’

पण्डित जी के साथ सभी लोग हँस पड़े। माधो काका खिसियाकर कर अपना सिर खुजाने लगे और पण्डितजी फिर कहने लगे–यह पर्व भारत-भर में पोष या माघ मास में मनाया जाता है।  अंग्रेजी महीनों के अनुसार हर वर्ष चौदह जनवरी को ही मनाया जाता है।

इस समय रबी की फसल कट चुकी होती है। इसलिए सभी स्थानों पर और विशेष कर किसानों के पास चावल, दलहन आदि अन्नों की बहुतायत रहती है। अतः इस दिन तिल, चावल, उड़द, मूग आदि चीजें डाल कर खिचड़ी बनायी जाती है। बहुत से स्थानों पर तो इस पर्व को खिचड़ी के नाम से ही पुकारा जाता है।

मकर-संक्रान्ति के दिन तिल का विशेष महत्त्व है। आज के दिन बहुत सवेरे ही उठ कर शौचादि नित्य-कर्मों से निपट कर प्रातः काल लोग तिल के तेल की मालिश करते हैं। फिर किसी नदी या बड़े तालाब में जाकर स्नान करते हैं। धनवान लोग गंगा के तट पर जाकर स्नान करते हैं।  और ब्राह्मणों को दान देते हैं।

कुछ लोग पानी में तिल डाल कर उस पानी से ही स्नान करते हैं। स्नान के बाद तिल का हवन, तिल मिले हुए जल का पान और तिलों का ही भोजन करते हैं। फिर तिल के लड्डू, तिल-पपड़ी, खिचड़ी आदि के साथ अन्य वस्तुए दान करते हैं। इस प्रकार ऊपर बताये छह कार्य तिलों द्वारा ही सम्पन्न होते हैं।

महाराष्ट्र में विवाहित स्त्रियाँ पहली संक्रान्ति को अन्य विवाहित स्त्रियों को तेल, कपास, नमक, आदि चीजों का दान करती हैं तथा सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपनी सहेलियों को रोरी लगाकर तिल, हल्दी तथा गुड़ देती हैं। बंगाल में भी इस तिथि को दान देने की विशेष महिमा है।

इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग और गंगा सागर में बहुत बड़ा मेला लगता है।  गंगा-यमुना आदि पवित्र नदियों पर भी स्थान-स्थान पर छोटे-मोटे मेले लगते हैं।’

“लेकिन पण्डितजी महाराज कथा?” इस बार नाक मुंह मोड़ कर ‘सू’ की आवाज के साथ जोर से सांस लेते हुए सरवण ने पूछा।

पण्डितजी फिर कहने लगे, “यह पर्व कब से मनाया जाता है। इसके बारे में ठीक-ठीक नहीं बताया जा सकता। मैं झूठ-मूठ की कथा तो तुम्हें सुना नहीं सकता। गपोड़ों के कारण ही पण्डित लोग बदनाम हो गये हैं। किन्तु शास्त्रों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है। इसका अर्थ है कि हजारों वर्षों से हमारे देश में यह पर्व मनाया जा रहा है। यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के कारण मनाया जाता है।  

Leave a Reply