हमारी सामाजिक समस्याएँ
Hamari Samajik Samasyaye
जहाँ कोई समाज रहता-पलता है, वहाँ उसके साथ कुछ समस्याएँ भी होती हैं। यदि सामाजिक समस्याएँ न हों तो समाज के विकास में कोई अड़चन आ नहीं सकती। हमारा भारतीय समाज भी आज अनेक प्रकार की समस्याओं से घिरा हुआ है।
समाज की पहली समस्या अन्धविश्वास तथा अज्ञान की है जो बहुत वर्ष बीत जाने के पश्चात् भी आज पूरी तरह से मिट नहीं पाई है। गाँवों के अधिकतर लोग आज भी झाड़-फेंक, टोने-टोटकों और सपानों के चक्कर में फंसे रहते हैं। किसी कार्य को जाते समय जब बिल्ली रास्ता काट जाती है तो लोग बड़ा अपशकुन मानते हैं। यदि कोई आदमी छींक देता है, कोई पीछे से टोक देता है या पानी का भरा लोटा हाथ से गिर जाता है तो लोग समझते हैं कि यह बुरा हुआ है इसलिए कार्य पूरा नहीं हो पाएगा।
दहेज की समस्या भी भारतीय समाज में आज मुँह फैलाए खड़ी है। दहेज के लोभी व्यक्ति रुपये पाने के लिए नव-वधुओं पर बड़े जुल्मोसितम ढहाते हैं। सास, ससुर तथा पति आदि मिलकर बहुओं को जिन्दा जला डालते हैं या गला घोंटकर मार डालते हैं। दहेज प्रथा भारतीय समाज के ऊपर एक कोढ़ की तरह है जो हमारे समाज को कुरूप करता जा रहा है। वधू-पक्ष के लोग जब वर-पक्ष के लोगों की दहेज की इच्छा पूरी नहीं कर पाते तो बहू का जीवन नर्क की तरह कष्टमय हो जाता है।
अनेक समाज सुधारक दहेज प्रथा के विरोध में सार्वजनिक स्थानों पर तो अनेक भाषण देते हैं लेकिन जब वे अपने पुत्रों की शादी करते हैं तो दहेज लेने से जरा भी नहीं चूकते। भारत की सबसे बड़ी सामाजिक समस्या तो नारियों के उचित विकास की है। वैसे तो हमारे सामाज में नारी के सम्बन्ध में कहा गया है-
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता”
अर्थात् जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता लोग निवास करते हैं। लेकिन भारतीय समाज में आज नारी के ऊपर भाँति-भाँति के अत्याचार कि जा रहे हैं। आज भी पुरुषों का अहम् नारी को अपने पैरों तले दबा देना चाहता है। वह नारी की अहमियत अपने से बढ़कर मानने को तैयार नहीं है। पर्दा-प्रथा अनमेल विवाह, बाल विवाह की स्वीकृति, विधवा विवाह निषेध, रूढ़िवाद, बहुविवाह की परम्पराओं के चलने से नारी की स्थिति दयनीय हो गई है। कर्तव्यशीलता के नाम पर आज नारियों को जिन्दा ही बलि पर चढ़ाया जा रहा है।
आर्थिक परतन्त्रता के कारण नारी आज घर की चारदीवारी में ही कैद होकर रह गई है। मुस्लिम समाज की नारियों की तो और भी बुरी दशा है। इस समाज के कानून में पुरुष को एक से अधिक विवाह करने की आज्ञा है जिस कारण मुस्लिम महिलाएँ जिन्दगी भर अपनी मौत की ईष्र्या का शिकार होती रहती हैं।
भ्रष्टाचार के रोग ने तो भारतीय समाज की कमर तोड़कर रख दी है। सरकारी दफ्तरों के बाबू बिना रिश्वत लिये कोई काम करना नहीं चाहते। ट्यूशन का धन्धा शिक्षकों के व्यवसाय का एक अन्य महत्त्वपूर्ण स्रोत बन गया है।
समाज में कुव्यसनों और बुरे नशों की समस्या भी सरकार के लिए सिर दर्द बन गई है। लोग शराब, बीड़ी, सिगरेट, अफीम, स्मैक, चरस, गाँजा, हेरोइन आदि नशीले पदार्थों के चक्कर में अपने तनमन की अमूल्य शक्ति तथा ढेर सारा रुपया-पैसा खर्च कर डालते हैं। ये चीजें समाज के लोगों को अन्दर से खोखला बना डालती हैं।
भारतीय समाज में एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति, संवेदनशीलता तथा सहयोग की प्रवृत्तियाँ काफी कुछ घट गई हैं। समाज में जब किसी पर अत्याचार होता है तो शेष लोग मूक-दर्शक बने अत्याचार को साक्षी होकर देखते रहते हैं लेकिन पीड़ित या दुःखी व्यक्ति की सहायता के लिए कुछ नहीं कर पाते।
शहर में कोई गुण्डा बदमाश व्यक्ति किसी अच्छे आदमी को पीटता है, किसी की हत्या करता है, नारी के आभूषण छीनता है और जेबकतरा दिनदहाड़े। किसी की जेब काटता है तो समाज ऐसे दृश्यों को देखते हुए भी अनदेखा बन जाता है। आज का समाज इतना स्वार्थी हो गया है कि अपने लाभ के लिए किसीको भी हानि पहुँचा सकता है।
दिनदहाड़े लोग बैंकों को लूट लेते हैं, रास्ते चलते लोगों को लूट लेते हैं, रेल, बस और कारों को लूट लेते हैं फिर भी समाज किंकर्तव्यविमूढ़ बना देखता रहता है।
अदालतों में झूठी गवाही और रिश्वत के बल पर बड़े-बड़े अपराधियों को एडा लिया जाता है तथा झूठे मुकदमे गढ़कर सीधे-सादे व्यक्तियों को जेल में हँस दिया जाता है। यह समाज की विकृति या दोष नहीं तो और क्या है?
यद्यपि सरकार के प्रयासों से अनेक लोगों तक शिक्षा की रोशनी पहुंची। है लेकिन आज भी भारत के अनेक व्यक्ति अशिक्षा के गहन अन्धकार में जीवन जी रहे हैं। पढ़े-लिखे चालाक लोग उनके साथ धोखा करके उनके जीवन को लूट रहे हैं।
भारतीय समाज की एक बहुत बड़ी समस्या युवकों की बेरोजगारी की है। अनेक पढ़े-लिखे एम.ए., बी.ए. पास तथा कई तरह की ट्रेनिंग किए हुए लोग बेरोजगार घर बैठे हैं। छोटा-मोटा काम-धन्धा वे करना नहीं चाहते और बड़ी सरकारी नौकरी के उनको दर्शन हो नहीं रहे हैं। जितनी भी जगह नौकरियों की निकलती हैं, उन्हें रिश्वत और सिफारिश वाले लोगों को दे दिया जाता है।
समाज की आर्थिक दशा बड़ी ही खराब हो चली है। महँगाई की मार के कारण आम लोगों का बुरा हाल है। समाज के अनेक लोग धार्मिक कट्टरता तथा साम्प्रदायिकता जैसी बुराइयों से ग्रसित हैं।
समाज में फिल्मों की अश्लीलता ने लोगों पर बुरा प्रभाव डाला है। फिल्मों में लड़ाई मारकाट के जो दृश्य दिखाए जाते हैं, वे समाज के किशोर लोगों, बच्चों और युवाओं के ऊपर बुरा असर डालते हैं।
भारतीय समाज की कुछ छोटी-मोटी समस्याएँ हैं-जैसे परिवार के विघटन की समस्या, प्रेम-विवाह की समस्या, अवैध मातृत्व और सन्तान की समस्या, विवाह-विच्छेद की समस्या, विवाहेतर सम्बन्धों की समस्या, पर पुरुष या पर नारी की ओर आकर्षण की समस्या तथा स्त्री स्वातन्त्र्य की समस्या आदि।