मूर्ख की मूर्खता
Murakh ki Murakhta
एक बार दस मित्र मिलकर नदी में स्नान करने गए। नदी का पानी बहुत ठंडा था। सब ने मिलकर स्नान का खूब आनन्द लिया। कुछ समय पश्चात् वे सब नदी से बाहर निकले तथा घर की तरफ जाने लगे। तभी एक मित्र ने कहा “घर जाने से पहले गिन तो लें कि हम पूरे हैं अथवा नहीं। कहीं ऐसा न हो कि हममें से कोई नदी में डूब गया हो।” फिर उसने गिनना शुरू किया, “एक, दो……आठ, नौ… अरे हम तो केवल नौ रह गए। दसवाँ डूब गया।” उसने चौंक कर कहा।। अन्य बालक भी घबरा गए। सबने बारी-बारी से गणना की। परन्तु हर बार नौ ही गिनने में आते। वे सब उदास होकर नदी के किनारे बैठ गए। तभी एक यात्री वहाँ से गुजरा। उसने सबको उदास बैठे देखा तो उसका कारण पूछा।। कारण पता चलने पर उसने स्वयं बालकों को गिना। वे तो पूरे दस थे। अत: यात्री बोला, “तुम सब एक कतार में खड़े हो जाओ, मैं तुम्हें गिनता हूँ।” ऐसा कहकर यात्री बालकों को गिनने ॥ लगा , “एक… दो…. नौ… दस। तुम तो पूरे दस हो। दरअसल तुम लोग गिनते समय स्वयं अपने आप को नहीं गिन रहे थे। अत: तुम सभी सही सलामत हो, तुममें से कोई भी – नहीं डूबा।” यात्री ने कहा। सभी मित्र अपने को सही सलामत पाकर बहुत खुश हुए। मूर्ख अपनी मूर्खता दिखाए बिना नहीं मानता।