Hindi Patra Lekhan ke Mukhya Tatva, Patra ki Vishashtaye evm Patra Lekhan ke Prakar.

पत्राचार किसी भाषा का एक महत्त्वपूर्ण भाग होता है। प्रायः छात्रगण पत्र लेखन को गंभीरता से नहीं लेते हैं जिसके कारण उन्हें परीक्षा में कम अंकों की प्राप्ति होती है। जहाँ तक व्यक्तिगत पत्र-व्यवहार का सम्बन्ध है, व्यवहारिक रूप से पत्र लेखन सरल होता है। अपने जीवनकाल के दौरान हम बहुत से पत्र लिखते हैं परन्तु मित्रों, सम्बन्धियों को लिखे जाने वाले पत्र परीक्षा भवन में लिखे जाने वाले पत्र जैसे नहीं होते हैं। व्यक्तिगत पत्रों को लिखते समय आप कोई भी अनियमितता और लापरवाही कर सकते हैं, क्योंकि वहाँ आपको किसी प्रकार की हानि का भयं नहीं होता है। परीक्षा में जब परीक्षक आपको पत्र लिखने के लिए कहता है तो वह आपसे यह अपेक्षा रखता है कि आप पत्र-लेखन के सभी औपचारिक नियमों का भी पालन करेंगे।

पत्र के मुख्य तत्त्व

कोई भी पत्र चाहे वह व्यक्तिगत अथवा व्यवसायिक हो, उसकी अपनी कुछ विशेषताएं होती हैं। ये हैं – पत्र के शीर्षक, अभिवादन और विवरण। आत्मीयता, स्पष्टता और संक्षिप्तता पत्र के मुख्य तत्त्व हैं। क्या हम इसे पुनः पढ़ना चाहते हैं ? यदि ऐसा है तो निश्चित रूप से यह एक अच्छा पत्र है। श्रेष्ठ पत्र वह है जिसे पढ़ते समय आपको लगे कि आप लेखक से बातचीत कर रहे हैं। ऐसे पत्र से अच्छे वार्तालाप का आनन्द आता है।

पत्र की मुख्य विशेषताएँ

एक अच्छे पत्र को औचित्यपूर्ण, स्पष्ट, संक्षिप्त और शिष्ट होना चाहिए।

(a) स्पष्टता का तात्पर्य यह है कि सूचना बिल्कुल स्पष्ट रूप में होनी चाहिए और पत्र को इस प्रकार से लिखा जाना चाहिए जिससे किसी प्रकार की भ्रांति की संभावना न हो। यदि पत्र अस्पष्ट अथवा घुमा फिरा कर लिखा गया होगा तो वह कभी भी दो व्यक्तियों के बीच संवाद आदान-प्रदान का माध्यम नहीं बन सकेगा। स्पष्टीकरण की आवश्यकता पड़ेगी, पुनः पत्र लिखने पड़ेंगे और काम में भी देरी हो जाएगी। पत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग इसका आरंभ और समाप्ति है। पत्र का आरंभ और अंत शब्दाडंबर से भरपूर नहीं होना चाहिए, इससे पत्र का सरल और मौलिक प्रवाह नष्ट हो जाता है। पत्र सदैव प्रत्यक्ष शैली में और कर्त्तृवाच्य में लिखा जाना चाहिए। शब्दों का चयन सामान्य बोलचाल से किया जाना चाहिए। असाधारण व अप्रचलित शब्दों का प्रयाग मात्र शैली में कलात्मकता और विलक्षणता उत्पन्न करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। दुर्बोध शब्दावली की अपेक्षा स्पष्ट अभिव्यक्ति अधिक उत्तम होती है।

स्पष्टता और औचित्य की माँग यह भी है कि पत्र में लेखक की मौलिकता और ईमानदारी की झलक दिखाई दे। इस बात का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए कि *कृपया विस्तृत जानकारी के लिए, Career’s Unique Letter Writing का अध्ययन करें।

समस्त आवश्यक सूचना पत्र में स्पष्ट रूप में दी गई है। भाषा में उन मुहावरेदार शब्दों का बार-बार प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए जिनका महत्त्व घट चुका है अथवा जो अप्रचलित है।

(b) संक्षिप्तता में पूर्णता अन्तर्निहित होती है। यद्यपि यह सत्य है फिर भी पत्र सभी दृष्टिकोणों से पूर्ण होना चाहिए। निःसन्देह पत्र में केवल वही लिखा जाना चाहिए जो परम आवश्यक हो परन्तु उसे इतने स्पष्ट शब्दों में व्यक्त किया जाना चाहिए कि पत्र पढ़ने वाले के मन में कोई अनिश्चितता उत्पन्न न हो। शब्द सम्बन्ध और अवसर के अनुरूप होने चाहिए। अनावश्यक रूप से लम्बे वाक्यों के प्रयोग से बचना चाहिए, परन्तु जहाँ पर भी पत्र की शैली गूढ़, शुष्क, नीरस अथवा संवेदनशून्य प्रतीत हो वहाँ कुछ लम्बे वाक्यों का प्रयोग कर लेना चाहिए। सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि पत्र-लेखन में प्रयुक्त होने वाली सामग्री पाठक के लिए रुचिकर विषयों से सम्बन्धित होनी चाहिए।

(c) शिष्टता: पत्र की शैली मैत्रीपूर्ण, विनम्र और बोलचाल की भाषा में होनी चाहिए। युक्तियाँ दोषों को ढकने में सफल होती हैं। किसी के भी पत्र का उत्तर देने में तत्परता दिखाना शिष्टता है। सभी सम्मान हीन, और खीझ उत्पन्न करने वाली बातों की उपेक्षा करनी चाहिए। पत्र-लेखक को इस बात की कल्पना कर लेनी चाहिए कि पत्र के प्राप्त कर्त्ता पर उसका क्या प्रभाव पड़ सकता है। पाठक की प्रतिक्रियाओं को ध्यान में रखकर लिखे गए पत्र की शैली सदैव शिष्ट होती है।

पत्रों के प्रकार

मुख्यतः पत्रों के तीन प्रकार माने गए हैं:

(1) व्यक्तिगत पत्र – जो कि मित्रों और सम्बन्धियों को लिखे जाते हैं।

(2) व्यवसायिक पत्र इनमें समाचारपत्रों को लिखे जाने वाले पत्र और प्रेस विज्ञप्तियाँ भी शामिल हैं।

(3) सामाजिक पत्र- वे पत्र जो कि लोगों को विशेष अवसरों पर या समारोहों में आमंत्रित किए जाने के लिए लिखे जाते हैं।

पत्र – लेखन से संबंधित कुछ निर्देश

पत्र लिखते समय विद्यार्थियों को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए: (i) अभिव्यक्तिजन्य विचारों को सुव्यस्थित एवं क्रमिक रूप से व्यवस्थित कीजिए। विचारों की उलझन अभिव्यक्ति में उलझाव उत्पन्न कर देती है।

(ii) सदा स्पष्ट और संक्षिप्त लिखिए। अभिव्यक्ति में उलझाव पैदा करने वाले शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कभी भी विचारहीन आडम्बरपूर्ण शब्दों का प्रयोग न करें।

(iii) प्रारंभिक वाक्य रुचिकर होना चाहिए ताकि वह पाठक को आकर्षित कर सके। यद्यपि व्यवसायी अथवा कार्यालयी पत्र औपचारिकता विहीन होते हैं फिर भी उन्हें रुचिकर बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। परम्परागत अनुसरण छोड़कर नवीन पंक्तियों के प्रयोग का प्रयास करना चाहिए ताकि पाठक आपके रोचक व्यक्तित्व से प्रभावित हो जाए।

(iv) पत्र के मुख्य भाग में आपको अपने भाव और विचार प्रकट करने चाहिए जिससे आप पाठक के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित कर सकें। यहाँ भी आपको सरल और स्पष्ट शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। आपको अपने पत्र को इतना जटिल नहीं बनाना चाहिए कि वह पाठक की समझ से बाहर की बात हो जाए। ऐसी स्थिति में आपको इतना सरल रूप भी नहीं प्रकट करना चाहिए जो पाठक के मन पर प्रभाव ही न डाल सके। पत्र भावानुकूल और आवश्यक शब्दों के प्रयोग से युक्त होना चाहिए। पाठक को इसे पढ़ने में आनंद का से युक्त होना चाहिए। अनुभव होना चाहिए। संक्षेप में, पत्र संक्षिप्त परन्तु व्याकरण और भाषा के आवश्यक गुणों

व्यक्तिगत पत्र

व्यक्तिगत पत्र की मुख्य विशेषता भाव, संवेदना और अपनत्व के वे शब्द हैं जो लेखक प्राप्त कर्त्ता को संदेश के रूप में व्यक्त करता है। अनौपचारिक पत्र मात्र समाचारों का पुलिन्दा न होकर लेखक के व्यक्तित्व को प्रकट करते हैं। इनमें मित्रों के मध्य होने वाली बातचीत आत्मीय रूप में प्रकट की जाती है। पत्र प्राप्त करने वाले को ऐसी अनुभूति होनी चाहिए मानो वह अपने मित्र के साथ मजेदार प्रसंगों का आनंद ले रहा हो।

व्यवसायिक पत्र

व्यवसायिक पत्र व्यक्तिगत पत्रों से कई प्रकार से भिन्न होते हैं। व्यवसायिक पत्र को लिखने का ढंग अशिष्ट एवं अनौपचारिक नहीं होना चाहिए। दूसरी बात यह है कि मुहावरों का भी व्यवसायिक पत्र में प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

सम्पादक के नाम पत्र

ये पत्र समाचार पत्रों को लिखे जाने वाले पत्रों के रूप में जाने जाते हैं। इस प्रकार के पत्र सम्पादक को सम्बोधित करके लिखे जाते हैं और वे जनता द्वारा पढ़े जाते हैं। उनकी शैली, प्रकृति और विषय दूसरे पत्रों से भिन्न होते हैं।

सम्पादक के नाम लिखे जाने वाले पत्रों की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं :

  1. समाचारपत्रों को लिखे जाने वाले पत्रों के विषय आम जनता की रुचि से सम्बन्धित होते हैं। उनमें व्यक्तिगत दुःख और विज्ञापन जैसे विषय सम्मिलित नहीं किए जा सकते।
  2. मूलतः ये संपादक को संबोधित होते हैं, लेकिन अपनी अभिव्यक्ति और शैली के द्वारा आम जनता के दुःख को वाणी देते हैं।
  3. इस प्रकार के पत्रों में सम्बोधन में ‘श्रीमान’ और अन्तिम भाग (हस्ताक्षर) में ‘आपका आभारी’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
  4. पत्र भेजने वाला अपना नाम भी दे सकता है अथवा प्रकाशन के लिए उपनाम भी दे सकता है।
  5. ऐसे सभी पत्रों में पत्र भेजने वाले का पूरा नाम, पता दिया जाता है।
  6. सम्पादक के नाम पत्र जनता को सूचना देने, अपने विचार प्रकट करने और उच्च अधिकारियों को कदम उठाने की प्रेरणा देने के उदेश्य से लिखे जाते हैं।
  7. ऐसे पत्रों की सामग्री तीन भागों में विभक्त- सूचना देना, परामर्श देना होती है और अपनी बात मनवाने के लिए जोर देना।
  8. इस प्रकार के पत्रों में तर्क शक्ति द्वारा अनुरोध किया जा सकता है।

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