शिवाजी जयन्ती
Shivaji Jayanti
छत्रपति शिवाजी का जन्म विक्रम संवत् 1737 की बैसाख शुक्ला अष्टमी (सन् 1627) को मराठा परिवार में हुआ। शिवाजी पिता शाहजी और माता जीजाबाई के पुत्र थे। प्रारंभ से ही इनका जीवन अत्यन्त सादा था। माता जीजाबाई ने शिवाजी के व्यक्तित्व को सँवारा। बचपन से ही शिवाजी को धर्म की रक्षा, देश की रक्षा व स्त्री जाति के सम्मान व रक्षा का पाठ पढ़ाया गया। साहसी और वीर बनाया।
दादा कोणदेव के संरक्षण में शिवाजी सभी प्रकार के युद्ध कौशल और हथियारों से भली प्रकार परिचित हुए। धर्म, संस्कृति और राजनीति की उचित शिक्षा दी गई। संत समर्थ रामदास के संपर्क में आने के बाद शिवाजी पूरी तरह एक कर्तव्यपरायण व कर्मठ योद्धा के साथ-साथ राष्ट्र-प्रेमी बन गए! समर्थ गुरु रामदास ने तब की सामाजिक और राष्ट्रीय परिस्थितियाँ देखकर शिवाजी को दीक्षा देते समय कहा था, “लोगों में आत्मगौरव व धर्म की भावना का पतन होने के कारण ही देश अवनति की ओर जा रहा है। लोगों में धर्म के प्रति जागरूकता और देश के प्रति निष्ठा जाग्रत की जाना आवश्यक है।”
गुरु रामदास के विचारों और उपदेशों का शिवाजी पर गहरा प्रभाव पड़ा। वे हर काम, हर निर्णय गुरु की आज्ञा व दिशानिर्देश के बाद ही करते थे।
शिवाजी ने सारे भारत में एक स्वतंत्र शासन स्थापित करने का प्रयत्न किया। राष्ट्र को विदेशी और आतताइयों से मुक्त कराने का प्रयास किया। औरंगजेब की कट्टरता और उद्दंडता के विरुद्ध उन्होंने संघर्ष किया। शिवाजी राष्ट्रीयता के जीवंत प्रतीक थे। वे सच्चे माने में एक अमर स्वतंत्रता सेनानी थे। इसीलिए उन्हें महाराणा प्रताप के साथ-साथ ही स्मरण किया जाता है।
शिवाजी एक कर्मठ योद्धा थे। उनमें नेतृत्व की क्षमता बचपन से थी। वे अपनी आयु के बच्चों को इकट्ठा कर युद्ध करने व गढ़-किलों की विजय का खेल खेलते थे। उनकी बचपन की यह आकांक्षा युवा अवस्था में आकर पूरी हुई। उन्होंने अपनी वीरता और पराक्रम के बल पर तोरण और पुरंदर के किलों पर विजय पताका फहराई। वे एक बुद्धिमान कर्मठ योद्धा थे ।
शिवाजी के प्रताप और बढ़ते कदमों से आतंकित बीजापुर के शासक आदिलशाह ने उन्हें बंदी बनाने का प्रयास किया। वह शिवाजी को तो बंदी न बना सका पर उनके पिता शाहजी को बंदी बना लिया। अपने साहस और कौशल से शिवाजी अपने पिता को आदिलशाह की कैद से कुशलपूर्वक छुड़ा लाए।
शिवाजी अपने गुरु समर्थ रामदास का बहुत आदर करते थे। उन्होंने अपना संपूर्ण राज्य गुरु की झोली में डाल दिया था। दान कर दिया। गुरु प्रसन्न तो हुए पर उन्होंने शिवाजी से पूछा, “तुमने राज्य तो मुझे दान कर दिया, अब तुम क्या करोगे?” तब शिवाजी का उत्तर था, “आपकी सेवा।” यह कहकर शिवाजी ने गुरु के कंधे पर लटका झोला उतारकर अपने कंधों पर रखा और चलने को तत्पर हो गए।
ऐसे राष्ट्रनिर्माता, भारतीय संस्कृति की पुनः प्रतिष्ठा करने वाले, गुरुभक्त शिवाजी का स्मरण सम्पूर्ण देश में निष्ठा के साथ किया जाना चाहिए। महाराष्ट्र में शिवाजी जयन्ती अत्यधिक उत्साह और समारोहपूर्वक मनाई जाती है।
शिवाजी सच्चे मायने में एक आदर्श पुरुष और राष्ट्रपुरुष थे। उनके विचारों और आदर्शों का अनुसरण कर देश को उन्नति के शिखर पर पहुँचाया जा सकता है।
कैसे मनाएँ छत्रपति शिवाजी जयन्ती |
How to celebrate Shivaji Jayanti
- आयोजन स्थल की सजावट करें।
- शिवाजी की तस्वीर लगाएँ ।
- तस्वीर के आगे दीपक जलाएँ ।
- शिवाजी एक आदर्श देशभक्त थे। महान् गुरुभक्त थे। गरीबों और महिलाओं के सहायक थे। भारतीय संस्कृति के रक्षक थे। उनकी जीवनी में ऐसे प्रेरणादायक संस्मरणों की भरमार है। बच्चों के चरित्र और व्यक्तित्व को प्रेरणा देने वाले ऐसे प्रसंग सुनाए जाएँ।
- अनेक प्रसंग ऐसे हैं जिन्हें नाट्य रूप में बच्चों के सामने प्रस्तुत किया जा सकता है।
- शिवाजी द्वारा व गुरु रामदास द्वारा कहे प्रेरक वाक्यांश पोस्टरों पर लिखकर लगाएँ ।